गीतिका/ग़ज़ल

“अपने जैसे लगते हो”

कितने वर्षों बाद मिले हो,
पर अपने जैसे लगते हो,

आंख का पानी सूख गया है,
तुम भी कितना गम सहते हो,

एक दिन जीवन होगा अपना,
बोलो तुम भी क्या कहते हो,

एक सपना मैंने देखा है,
तुम भी तो सपने बुनते हो,

दर्द छुपाने में हो माहिर,
मेरी तरह तुम भी हंसते हो,

दौलत शोहरत इज्जत पैसा,
उसकी चिंता क्यों करते हो,

थोड़ा मैं तुझ में रहता हूं,
थोड़ा तुम मुझ में रहते हो,

राजेश सिंह

पिता. :श्री राम चंद्र सिंह जन्म तिथि. :०३ जुलाई १९७५ शिक्षा. :एमबीए(विपणन) वर्तमान पता. : फ्लैट नं: ऐ/303, गौतम अपार्टमेंट रहेजा टाउनशिप, मलाड (पूर्व) मुंबई-400097. व्यवसाय. : मुख्य प्रबंधक, राष्ट्रीयकृत बैंक, मुंबई मोबाइल. :09833775798/08369310727 ईमेल. :raj444singhgkp@gmail.com

2 thoughts on ““अपने जैसे लगते हो”

  • सुमन अग्रवाल "सागरिका"

    सुंदर

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी गजल!

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