लघुकथा

लघुकथा – सीमित दायरे (उलझन)

“क्या सोच रही हो बेटा ; सारी परिस्थितियों पर गौर करने के बाद एकमात्र विकल्प अब तेरा विवाह ही बचा है।”

विन्नी लगातार खुद के लिये फैसला लेने में पिछले दो तीन दिनों से कसमकस में जी रही थी। पापा की आवाज कानों में पड़ी अपने गुस्से पर जबरन काबू करते हुए बोली ; “पापा पहली बात तो हमें बेटा कहना छोड़ दें क्योंकि बेटे को दहेज नहीं देना पड़ता है , दूसरी बात बालिग हो गई हूँ जिंदगी में कुछ फैसले का चुनाव मुझ पर भी छोड़ दें। अभी-अभी तो नौकरी लगी है । शिक्षा ऋण चूकाना है भाई को एम बी ए कराना है।मानती हूँ वह भी एजूकेशनल लॉन ले लेगा फिर भी उच्च शिक्षा में ढ़ेरों खर्च होते हैं।”

“हाँ हाँ मुझे तो पहले से पता था अब तू बड़े पोस्ट पर विराजमान हो गई है ,यह तू नहीं तेरा दंभ बोल रहा है।”

आँखों में आये आँसुओं को रोकने की कोशिश में वह बाथरूम की ओर चुपचाप चल दी। अपने आपसे सवाल करने लगी- जिस परिवार को मैं पसंद हूँ वह शायद मेरी शिक्षा एवं नौकरी के बदौलत… ,काश पापा समझ पाते अपने भविष्य निधि से कर्ज लेकर मेरा कर्ज उतारना चाहते हैं।अगर ससुराल वाले मेरे कर्ज को अपना कर्ज मान लेते तो पापा को यूँ बेबस नहीं होना पड़ता । लड़की शिक्षित और संस्कारी चाहिए साथ में शादी के पहले की जिम्मेदारी माता पिता संभालें। वह लोग तो हर महीने हमारे वेतन का हिसाब रखेंगे। वेतन उठाने लायक मैं कैसे बनी इससे उनलोगों को कोई लेना-देना नहीं। अपनी ही सोच से चिढ़ हो गई नहीं बहुत वक्त बिता चुकि अब निर्णय की घड़ी आ गई है।

बाहर निकल कर पापा का मोबाइल माँग कर भावी श्वसुर जी का न. मिलाया ; “हेलो पिता जी आप हमारा ऋण हमें शादी के बाद चुकाने की इजाजत दें या हमारी ओर से रिश्ता खत्म समझें।”

सपने में भी गूमान नहीं था कि विन्नी इस तरह कठोर निर्णय लेगी ,घबराहट में वो फोन विन्नी के हाथ से छीन कर कुछ कहना चाहे तभी उधर से आवाज़ आई “कैसी बातें करती हो बहू ? तुम अब हमारी हो तो तेरा कर्ज भी हमारा हुआ ,आज ही पूरी रकम भेजता हूँ कर्जमुक्त होकर ही तुम दुल्हन बनो।”

दिल में आया कह दे ; समधी साहब अगर आप आधी रकम भी दहेज में छोड़ देते तो हमारी बेटी क्या मैं भी कर्जमुक्त होकर आपका आजीवन ऋणी हो जाऊँ। वैसे भी हमारी बेटी की शादी मात्र एक साल विलंब से करुँ तो कर्ज से मुक्ति हम बाप-बेटी को मिल जाये, पर क्या करुँ बिटिया तो पराये घर की शोभा बनती है,अब देर करना उचित नहीं ।

“क्या सोच रहे हैं पापा ?”

“कुछ नहीं बिटिया तेरे ससुराल वाले बड़े ही भले लोग हैं, भाग्यशाली है तुम ऐसे रिश्ते भाग्य से मिलते हैं ,बस तुम हाँ कर दे सब ठीक हो जायेगा।”

“आप जो उचित समझें ,मैंनें तो फैसला सुना दिया।”

आरती राय, दरभंगा बिहार.

*आरती राय

शैक्षणिक योग्यता--गृहणी जन्मतिथि - 11दिसंबर लेखन की विधाएँ - लघुकथा, कहानियाँ ,कवितायें प्रकाशित पुस्तकें - लघुत्तम महत्तम...लघुकथा संकलन . प्रकाशित दर्पण कथा संग्रह पुरस्कार/सम्मान - आकाशवाणी दरभंगा से कहानी का प्रसारण डाक का सम्पूर्ण पता - आरती राय कृष्णा पूरी .बरहेता रोड . लहेरियासराय जेल के पास जिला ...दरभंगा बिहार . Mo-9430350863 . ईमेल - arti.roy1112@gmail.com