गीत/नवगीत

लावणी छंद – नारी की व्यथा

तनी अँगुलियाँ चढ़ी भृकुटियां, अरु तानों को सहती थी।
बहुत सोचती प्रति उत्तर दूं, किंतु मौन ही रहती थी।

संस्कार से बंधा हुआ मन, लोक लाज से नैन भरे।
किंतु रहे कुत्सित जग वाले, करुण हृदय से सभी परे।
लगा ठहाके जश्न मनाते, रुदन पलक जब करती थी।
बहुत सोचती प्रति उत्तर दूं, किंतु मौन ही रहती थी।

मेरे अपने भी क्या कम थे, चोट अरु अट्टहास करें।
साहस मेरा तार-तार कर, हँस हँस कर उपहास करें।
पल पल घटती आशाएं सब, शून्य ही तकती रहती थी।
बहुत सोचती प्रति उत्तर दूं, किंतु मौन ही रहती थी।

है अतीत इक निश्छल मन था, उम्मीदों से भरा-भरा।
नव पल्लव से तरु आल्हादित, ज्यूँ हरियाली भरी धरा।
मैं भी थी सुकुमारी  हिय में, स्वप्न नवल नित गढ़ती थी।
बहुत सोचती प्रति उत्तर दूं, किंतु मौन ही रहती थी।

— रीना गोयल ( हरियाणा)

रीना गोयल

माता पिता -- श्रीओम प्रकाश बंसल ,श्रीमति सरोज बंसल पति -- श्री प्रदीप गोयल .... सफल व्यवसायी जन्म स्थान - सहारनपुर .....यू.पी. शिक्षा- बी .ऐ. आई .टी .आई. कटिंग &टेलरिंग निवास स्थान यमुनानगर (हरियाणा) रुचि-- विविध पुस्तकें पढने में रुचि,संगीत सुनना,गुनगुनाना, गज़ल पढना एंव लिखना पति व परिवार से सन्तुष्ट सरल ह्रदय ...आत्म निर्भर