लघुकथा

लघुकथा – तुलसी का बिरवा

“सुनीता कुछ पौधें मेरे  कार्यालय में भी लगाने है। जब मैनेजर को पता चला कि सुनीता  तुम्हारी नर्सरी  है, तो बहुत खुश हुए और बोले कि कुछ पौधें यहाँ कार्यालय मे भी लगवा दो और जल्दी ही उसके पैसे भी मिल जायेगें। समय रहते तुमने ये काम शुरू कर दिया ! वर्ना तो …..।” रवि ने उसको देखते हुए कहा।
“हो जायेगा,” कढाई में सब्जी भूनते हुए उसने कहा ।
सुनीता को याद आया वह दिन जब उसने इस घर मे शिफ्ट किया था ।
ये लो बेटा तुलसी का बिरवा ! कल जब तुम माली से बात कर रही थी तुलसी को घर में लगाने के लिये, मैने सुना ,जान गयी कि तुमको भी पेड़ पौधौं से प्यार है । आखिर तुमने नये जीवन की शुरुआत की है ,मैने सोचा इससे अच्छा  उपहार तो कोई हो नही सकता । “अब तुम इसकी देख भाल करना”।  बगल के फ्लैट मे रहने वाली ,,आँटी हाथ मे पौधा लिये मेरे पास आयी थी ।
“जी आँटी ,माँ कहती थी ,हर  स्त्री को तुलसी मे रोज जल देना चाहिए, सीचने पर सुख और सौभाग्य वृद्धि होती है ,और अनेक रोगो मे भी इसका सेवन लाभकारी है ,पर्यावरण की सुरक्षा अलग होगी ..।
उसने अपनी बालकनी से देखा था आँटी ने अनेक पौधें लगा रखे थे । एक नर्सरी बना रखी थी, उसमे वो हमेशा उन पौधों की देखभाल करती नजर आती थी । खाली समय जब भी मिलता उसके लिये एक पौधा ले आती,और बताती इसमे इतनी खाद डालनी है कैसे देखभाल करनी है  उसके पास भी अनेक पौधे हो गये थे।
“क्या बात है ? आज तुम बहुत उदास लग रही हो ,मुझे बताओ मै क्या कर सकती हूँ तुम्हारे लिए?” आँटी ने सोफे पर बैठते हुए उससे पूछा ।
“अभी तक अनू की ही फीस भरनी होती थी ,अब रानू की भी भरनी होगी हमारी तो सीमित आय है। दोनो का कैसे होगा ,मै भी नौकरी नही कर पाऊँगी ,बच्चे छोटे हैं। उसने धीमी आवाज मे कहा।
बेटा मेरे ,दोनो बेटों के यहाँ से चले जाने पर ,मै और तुम्हारे अंकल अकेले रह गये थे, समय तो कटता नही था  ।तब मैने इन पौधों मे अपने बच्चे तलाशने शुरू किये । और फिर कुछ पौधों से ही धीरे -धीरे एक नर्सरी  बना ली उससे होने वाली आमदनी से मै गरीब बच्चों की पढाई पर खर्च करती हूँ। जिससे मुझे आत्मिक सुख मिलता है । “अब तुम भी मेरे  साथ जुड़  जाओ, नर्सरी से जो आमदनी होगी तुम अपनी गृहस्थी पर खर्च करना! इस तरह तुम्हारी घर बैठे ही आमदनी हो जायेगी,शुद्ध हवा और उन को देख आँखों को भी सुख मिलेगा ।
आँटी की दी शिक्षा इतनी कारगर होगी ये सोचा नही था कि उसकी शहर में सब से बड़ी नर्सरी होगी ।और आमदनी से घर खर्च भी ठीक से हो पायेगा ।
“अरे क्या सोचने लगी ,देर हो रही है नाश्ता  बन गया ,?” रवि ने तैयार होते हुए उस से पूछा ..।
अभी परोसती हूँ ..कहकर नाश्ता लगाने लगी ।
बबीता कंसल

बबीता कंसल

पति -पंकज कंसल निवास स्थान- दिल्ली जन्म स्थान -मुजफ्फर नगर शिक्षा -एम ए-इकनोमिकस एम ए-इतिहास ।(मु०नगर ) प्राथमिक-शिक्षा जानसठ (मु०नगर) प्रकाशित रचनाए -भोपाल लोकजंग मे ,वर्तमान अंकुर मे ,हिन्दी मैट्रो मे ,पत्रिका स्पंन्दन मे और ईपुस्तको मे प्रकाशित ।