कविता

जमाना

पहले रिश्तो का नाम हुआ करता था जिंदगी
और आजकल रिश्ते ही कहाँ हुआ करते है

पहले कच्चे मकानों में भी लोगो के दिल बड़े हुआ करते थे
और आजकल कच्चे मकान ही कहाँ हुआ करते है

पहले अहमियत लोगो को दी जाया करती थी पैसो को नहीं
और आजकल लोगो की अहमियत ही कहाँ हुआ करती है

पहले लोग रिश्तो का मतलब बिना जाने ही रिश्ते निभाया करते थे
और आजकल बिना मतलब के रिश्ते ही कहाँ जुड़ा करते है

पहले लोग बातो से प्यार नहीं जताया करते थे इसलिए दिल में हुआ करता था
और आजकल लोग दिल में प्यार ही कहाँ रखा करते है

पहले लोगो में रोटी बटा करती थी इसलिए आँगन महफूस हुआ करते थे
और आजकल लोग रोटी का बटवारा ही कहाँ किया करते है

पहले लोग त्योहारों में मिठाईया बांटा करते थे इसलिए घरों में मिठास हुआ करती थी
और आजकल लोग मिठाईया ही कहाँ बांटा करते है

पहले लोग बच्चो को संस्कार सिखाया करते थे इसलिए एकता हुआ करती थी
और आजकल लोगो से एकता रखना सिखाया ही कहाँ करते है

पहले मर्दो की इज्जत पगड़ी में और मर्दानगी मूछों में हुआ करती थी
और आजकल मर्दो की पगड़ी और मूछ ही कहाँ हुआ करती है

पहले औरत की शर्म गहना हुआ करती थी
और आजकल औरतें गहने पहना ही कहाँ करती है

पहले चूल्हे की रोटी में स्वाद और माँ के हाथ में प्यार हुआ करता था
और आजकल चूल्हे ही कहाँ हुआ करते है

पहले भाई बहनो में चिढ़ाने वाला हसीं मज़ाक और एक दूसरे पर हक़ हुआ करता था
और आजकल वो हसीं मज़ाक ही कहाँ हुआ करता है

पहले टेलीफ़ोन नहीं थे फिर भी दूर के रिश्ते भी मजबूत हुआ करते थे
और आजकल पास के रिश्तो में भी मजबूती कहाँ हुआ करती है

दीप्ति शर्मा (दुर्गेश)

पता : RC - 952 प्रताप विहार खोरा कॉलोनी ग़ाज़ियाबाद, उम्र : 22 (04/08/1996) शिक्षा : पोस्ट ग्रेजुएट पेशेवर : एकाउंटेंट , लेखिका फ़ोन नo : 8505894282