कविता

नारी मतलब निरंतर बढ़ती चलना

कभी माँ बनकर जन्म दिया,
कभी बहन बनकर राखी बाँधी,
कभी सुहागन बनकर घर बनाया,
कभी पुत्री बनकर गौरवान्वित करवाया।

तुझ में शक्तियाँ छुपी अपार,
स्वयं को पहचान और आगे बढ़,
ना कर गुमान कुछ छूट जाने की,
बस बढ़ती चल, बढ़ती चल।

नई राहें तेरा रास्ता तकती हैं,
तेरे आँचल में छिपी ख़ुशियाँ अपार,
सिर्फ़ आज नहीं हर रोज़ है तेरा,
बढ़ चल, बढ़ चल तुझसे ही बना ये संसार।

सभी नारियों को समर्पित।

मौलिक रचना
नूतन गर्ग (दिल्ली)

*नूतन गर्ग

दिल्ली निवासी एक मध्यम वर्गीय परिवार से। शिक्षा एम ०ए ,बी०एड०: प्रथम श्रेणी में, लेखन का शौक