कविता

मां मुझे मत मारो

मां मैं तुम्हारे अंदर हूं
मुझे मत मारो
मैं भी जीना चाहती हूं
दुनिया देखना चाहती हूं
मां मैं तो एक छोटी सी कली हूं
जो पत्तो में सिमटी हुई है
मां मैं तुम्हारे गोद में खेलना चाहती हूं
मां मुझे मत मारो मैं जीना चाहती हू
मैं अपनी बडी बहन का लाड चाहती हूं
मां मैं पापा के कंधे पर चढ़ना चाहती हूं
मां मैं भाइयों का दुलार चाहती हूं
मां मैं तुम्हारे साथ त्योहार मानना चाहती हूं
मां मैं सारे सुख दुःख महसूस करना चाहती हूं
मां मैं तुम सबके साथ खेलना चाहती हूं
मां मैं एक छोटी सी कली हूं
जो खिलना चाहती हैं
मां मुझे मत मारो मैं तुम्हारे होठों पर खुशी लाना चाहती हूं
मां मुझे मत मारो
गरिमा

गरिमा लखनवी

दयानंद कन्या इंटर कालेज महानगर लखनऊ में कंप्यूटर शिक्षक शौक कवितायेँ और लेख लिखना मोबाइल नो. 9889989384