लघुकथा

वेदना

”वेद पढ़ना आसान हो सकता है
लेकिन जिस दिन आपने किसी की
“वेदना”
को पढ़ लिया तो समझो
ईश्वर को पा लिया.”
आज सुबह-सुबह साध्या ने सुप्रभात करते हुए यह संदेश भी भेजा था. साध्या ने सचमुच ”वेदना” को एक नया अर्थ दे दिया था. हर एक की वेदना को अपनी वेदना समझकर सहायता करने वाली साध्या भी किसी वेदना से ग्रस्त हो सकती है, यह शायद किसी को अहसास ही नहीं होने पाया था!
”साध्या, मेरी आंख का कैट्रिक का ऑपरेशन होने वाला है, थोड़े दिन के लिए आकर घर संभाल सको तो अच्छा है.” देवरानी का संदेश मिलते ही साध्या बैग में कपड़े डालने शुरु करती.
”साध्या, तुम्हारी भाभी की बहू की डिलीवरी होने वाली है, आकर मदद कर सको तो अच्छा है.” साध्या उसे ही मां का आदेश मानकर उधर चल पड़ती.
”ममी मेरे सास-ससुर आने वाले हैं. हम तो ऑफिस में व्यस्त रहते हैं, आप थोड़े दिनों के लिए आकर उनको कंपनी दे सको तो बहुत अच्छा रहेगा.” सीनियर मैनेजर के पद पर नियुक्त छोटी बेटी के इस संदेश को वह कैसे नकारती भला!
”ममी मेरे ससुर जी अस्पताल में एडमिट हैं, आप थोड़े दिन आकर बिटिया को संभाल सकें, तो मैं ससुर जी की सेवा कर सकूंगी.” बड़ी बेटी के इस संदेश को ही सेवा समझकर वह उधर का रुख करती.
सबकी वेदना को बांटते-बांटते मुस्कुराते रहने वाली साध्या को पति के देहांत के बाद अपना बसा-बसाया बड़ा-सा घर छोड़कर इधर-उधर भागने में कितनी वेदना से रू-ब-रू होना पड़ता होगा, यह शायद सब भुला बैठे थे!

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “वेदना

  • लीला तिवानी

    किसी की “वेदना” को समझ पाना सच्चा वेद पढ़ना है.

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