कविता

भूल स्वीकार कर

मकरन्द पान करते भ्रमर
इठलाती-मँडराती तितलियाँ
कुहू-कुहू की टेर लगाती कोयलिया
प्रेम आलिंगन करती गौरैया
अब ये सब कहाँ चले गए…

सूने-सूने हो गये गाँव
मिलती नहीं बरगद वाली छाँव
चुप हो गया पक्षियों का कलरव
भरते नहीं चौकडियाँ मृग-खरगोश

हरियाली मिटती जा रही
धरा नित-नित बंजर हो रही
विकास नाम का चल रहा खंजर
कंकरीट के जंगल फैल गये चहुँओर

पेड़-पौधे लग रहे हैं गमलों में
ऐसे तो पर्यावरण नहीं बचेगा
प्लास्टिक के फूलों से खुशबू नहीं मिलेगी
प्राणवायु ऑक्सीजन भरपूर नहीं मिलेगी

ए मनुज! भूल स्वीकार कर
प्रकृति के साथ मत अन्याय कर
अगर पर्यावरण स्वच्छ रहेगा
तो हर प्राणी का अस्तित्व रहेगा ||

— मुकेश कुमार ऋषि वर्मा 

मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

नाम - मुकेश कुमार ऋषि वर्मा एम.ए., आई.डी.जी. बाॅम्बे सहित अन्य 5 प्रमाणपत्रीय कोर्स पत्रकारिता- आर्यावर्त केसरी, एकलव्य मानव संदेश सदस्य- मीडिया फोरम आॅफ इंडिया सहित 4 अन्य सामाजिक संगठनों में सदस्य अभिनय- कई क्षेत्रीय फिल्मों व अलबमों में प्रकाशन- दो लघु काव्य पुस्तिकायें व देशभर में हजारों रचनायें प्रकाशित मुख्य आजीविका- कृषि, मजदूरी, कम्यूनिकेशन शाॅप पता- गाँव रिहावली, फतेहाबाद, आगरा-283111