कविता

कलयुग

कलयुग

जिंदगी की बड़ी गलती ,
सभी को अपना समझ ,
दिल से जुड़ जाते हो,
उसके दर्द अपने समझ,
मलहम लगाते हो।।

यही संस्कार मिले बचपन से,
करो भला तुम सभी का,
कोई नही दुश्मन है,
बैर नही करो किसी से ,
आज ये गलत हो गए ।

जिनको तुम समझे अपना,
एक दिन वही छोड़ देंगे,
पूरा जब होगा मतलब उनका,
प्यार के बदले तुमको,
आंसू वो दे जाएंगे ।।

कलयुग है ये जी ,
यहां कोई नही अपना,
सब मतलब के साथी,
दिल से नही तुम,
रिश्ते बनाओ दिमाग से ।।

कर भला हो भला ये,
बात हुई पुरानी मिथ्या,
आज कर भला हो बुरा ,
ये करते है लोग ,
कलयुग है जी कलयुग।।।

सारिका औदिच्य

*डॉ. सारिका रावल औदिच्य

पिता का नाम ---- विनोद कुमार रावल जन्म स्थान --- उदयपुर राजस्थान शिक्षा----- 1 M. A. समाजशास्त्र 2 मास्टर डिप्लोमा कोर्स आर्किटेक्चर और इंटेरीर डिजाइन। 3 डिप्लोमा वास्तु शास्त्र 4 वाचस्पति वास्तु शास्त्र में चल रही है। 5 लेखन मेरा शोकियाँ है कभी लिखती हूँ कभी नहीं । बहुत सी पत्रिका, पेपर , किताब में कहानी कविता को जगह मिल गई है ।