गीतिका/ग़ज़ल

खयालों के हुजूम

रहते  हैं  खयालों के , हुजूम  आस पास।
फिर भी ये जिंदगी है ,न जाने क्यूं उदास।
ख़्वाहिश  के  परिंदे  हैं ,उड़  जाएं न कहीं,
कुछ बंदिशेंहैं कायम ,कुछ फैसले हों खास।
रौशन  न यूं करो फिर , बुझती हुई शमा को,
मंजिल  पे  पहुंचने की , जगने लगी है आस।
उनकी  ख़बर  नहीं  है , अपनी भी  है कहां ,
फिर भी न जाने कैसे , आ जा २ही है सांस।
पतझड़  में दरख्तों पे , खिलते कहां हैं फूल ,
 रहता  नहीं  हमेशा , ये  मौसमें  मधुमास ।
पुष्पा ” स्वाती “

*पुष्पा अवस्थी "स्वाती"

एम,ए ,( हिंदी) साहित्य रत्न मो० नं० 83560 72460 pushpa.awasthi211@gmail.com प्रकाशित पुस्तकें - भूली बिसरी यादें ( गजल गीत कविता संग्रह) तपती दोपहर के साए (गज़ल संग्रह) काव्य क्षेत्र में आपको वर्तमान अंकुर अखबार की, वर्तमान काव्य अंकुर ग्रुप द्वारा, केन्द्रीय संस्कृति मंत्री श्री के कर कमलों से काव्य रश्मि सम्मान से दिल्ली में नवाजा जा चुका है