उपन्यास अंश

ममता की परीक्षा ( भाग -58 )

नजदीक आकर सेठ शोभलाल ने एक विजयी मुस्कान बृन्दादेवी की तरफ उछाली और बड़ी खुश मुद्रा में उनकी बगल में जाकर बैठ गए । उन्हें खुश देखकर बृन्दादेवी की मुखमुद्रा भी मुस्कान युक्त हो गई । उसकी बगल में बैठते हुए सेठ शोभालाल बोले ,” आज तो लगता है मैं भगवान से स्वर्ग भी माँगता तो मुझे खुशी खुशी दे देते । ”
उनकी खुशी में अपनी खुशी का इजहार करती हुई बृन्दादेवी बोलीं ,” अच्छा ! ऐसा क्या हो गया जो आप इतना खुश हो रहे हैं ? ”
” अरे भागवान ! अब बताओ खुश न होऊँ तो और क्या करूँ ? डॉक्टर के कक्ष में उनसे बात कर ही रहा था कि सेठ अम्बादास का फोन आ गया अस्पताल के नंबर पर ! ” कहते हुए सेठ शोभालाल ने प्रश्नात्मक निगाहों से जमनादास की तरफ देखा । उनकी निगाहों की भाषा भलीभाँति समझते हुए बृन्दादेवी ने मुस्कुराते हुए कहा ,” हाँ ! तो क्या हुआ ? कहिए ! ये जमनादास कोई गैर थोड़े न है ! अपना ही लड़का है ! ”
आश्वस्त होते हुए सेठ शोभालाल ने दबी जुबान में कहना शुरू किया ,” डॉक्टर से बात हो चुकी थी । उन्होंने भी यही बताया कि गोपाल को अमेरिका शिफ्ट करने में ही खतरा कम रहेगा । इसके लिए आवश्यक डॉक्टरी दस्तावेज अस्पताल की तरफ से मुहैय्या कराने का उन्होंने वादा भी किया । अब चिंता सिर्फ इसी बात की थी कि गोपाल को अमेरिका कैसे भेजा जाए ? मसलन वह वहाँ कहाँ रहेगा ? उसकी देखभाल कौन करेगा ? ” तभी बीच में ही टोकते हुए बृन्दादेवी बोल पड़ीं ,” मैं हूँ न उसकी देखभाल के लिए ! मैं जाऊँगी ! अभी थोड़ी देर पहले आपने ही तो कहा था । भूल गए ? ”
नागवारी के भाव चेहरे पर लाते हुए सेठ शोभालाल ने कहा ,” अरे भागवान ! पहले पूरी बात तो सुनो ! बेवजह टोकाटाकी न करो ! समझीं ? हाँ तो मैं अभी इन्हीं सब बातों को सोच समझ रहा था कि इतने में डॉक्टर साहब के फोन की घंटी बज उठी । सेठ अम्बादास का फोन था मेरे लिए । उनसे बात करते हुए ऐसा लगा जैसे वो बहुत घबराए हुए हों । गोपाल के हालचाल के बारे में पूछ रहे थे । मैंने डॉक्टर द्वारा बताई गई सभी जानकारी उनको दे दी । सुनते ही उन्होंने मेरी खुशामद करते हुए कहा ‘ आप अमेरिका आने जाने , वहाँ ठहरने और गोपाल के इलाज की चिंता छोड़ दो । मैं सब संभाल लुँगा । आज से गोपाल की पूरी जिम्मेदारी मेरी । ‘ कहते हुए उन्होंने अपनी बेटी सुशीला के बारे में याद दिलाते हुए निवेदन किया कि यदि अमेरिका जाने के पहले दोनों की शादी हो जाती तो बहुत बढ़िया हो जाता । मुझे ऐसा लग रहा था जैसे वह अचानक कुछ कहते कहते रुक गए हों । मैंने उनसे कहा है कि आप आकर हमसे मिल लो । फिर जैसा कहोगे वैसा तय कर लेंगे । ”
कहने के बाद शोभालाल जी एक पल के लिए रुके और फिर बृन्दादेवी की तरफ देखते हुए बोले ,” अच्छा हुआ न ? हमारी अमेरिका जाने और गोपाल के इलाज की सारी जिम्मेदारी खत्म ! अब सेठ अम्बादास आ जाएं तो लगे हाथ यह भी तय कर लें कि गोपाल से अपनी बेटी की शादी किस तरह करना चाहते हैं ? अपनी कंपनियों में पचास प्रतिशत हिस्सेदारी भी गोपाल के नाम यानी हमारे नाम कर दें तो सौदा बुरा नहीं । ” कहने के बाद सेठ शोभालाल कुटिलता से मुस्कुराए थे ।
” तो फिर देर किस बात की ? अम्बादास जी कब आ रहे हैं ? ” बृन्दादेवी ने पूछा ।
घड़ी देखते हुए सेठ शोभालाल बोले ,” बस ! थोड़ी ही देर में वो हमारे घर पर हमसे मिलने आ रहे हैं । यहाँ अब हमारी जरूरत नहीं । डॉक्टर साहब से बात हो गई है । अभी गोपाल को यहीं रखेंगे और परीक्षणों के नतीजों के साथ ही अस्पताल की सिफारिश पर तुरंत ही अमेरिका जाने की इजाजत मिल जाएगी । डॉक्टर साहब ने पूरे कागजात अभी थोड़ी देर में देने का आश्वासन दिया है । हमारा ट्रेवल एजेंट आकर सारे कागजात लेकर आगे का काम पूरा कर लेगा । आओ ! अब हमें घर चलना चाहिए । ” कहने के साथ ही शोभालाल उठ खड़े हुए ।
कुछ ही मिनटों में शोभालाल और बृन्दादेवी के साथ जमनादास भी कार में बैठे गोपाल के बंगले की तरफ बढ़े जा रहे थे । रास्ते में जमनादास अपने बंगले के सामने ही उतर गया । उसे छोड़कर शोभालाल अग्रवाल विला में पहुँचे । बंगले के मुख्य दरवाजे के सामने ही सेठ अम्बादास की आलीशान’ इम्पाला ‘ कार खड़ी थी और उसके बगल में ही ड्राइवर सिगरेट के कश लेते हुए चहलकदमी कर रहा था । शोभालाल की गाड़ी पर नजर पड़ते ही उसने हाथों से सिगरेट नीचे फ़ेंककर उसे जूते से मसलते हुए सेठ शोभालाल और बृन्दादेवी को सलाम किया । दरबान ने गाड़ी देखते ही बंगले का गेट खोल दिया था । गाड़ी पार्किंग में लगाकर सेठ शोभालाल और बृन्दादेवी बंगले के मुख्य दरवाजे से हॉल में पहुँचे ।
सेठ अम्बादास उनका ही इंतजार कर रहे थे । सेठ शोभालाल और अम्बादास दोनों बड़ी आत्मीयता से गले मिले । बृन्दादेवी ने अपने दोनों हाथ जोड़ते हुए शालीनता से उन्हें नमस्ते किया ।
आमने सामने सोफे पर बैठते हुए सेठ शोभालाल ने बात शुरू की ,” सेठ जी क्या लेंगे ? चाय या कॉफी ? ”
” जी शुक्रिया ! दरअसल मैं जरा जल्दी में हूँ । एक जरुरी मीटिंग में जाना है और समय करीब है । चाय नाश्ते का दौर तो चलते रहेगा । तकल्लुफ की जरूरत नहीं । सीधे बात पर आते हैं । आप ही बताइए । आप किस तरह से शादी करना चाहते हैं अपने बेटे की । आप जैसे भी कहेंगे मैं तैयार हूँ ।” सेठ अम्बादास ने बेबाकी से अपनी बात कही । उनकी प्रभावशाली वाणी से बृन्दादेवी भी काफी प्रभावित हुई थीं । कभी कभार अम्बादास जी से उनका मिलना जुलना होता था पार्टियों वगैरह में लेकिन वह एक हाई सोसाइटी की एक औपचारिकता मात्र ही हुआ करती थी । बातचीत की नौबत लगभग नहीं ही आती थी ।
सेठ शोभालाल ने रहस्यमयी मुस्कान के साथ जवाब दिया ,” सेठ जी ! शादी तो आप अपनी हैसियत के अनुरूप ही करेंगे इसमें तो कोई संशय नहीं लेकिन पहले जरा देना लेना क्लियर हो जाता तो ……..! ”
सेठ अम्बादास भी मुस्कुराए । बोले ,” आप जानते ही हो सुशीला मेरी इकलौती लड़की है । मेरा जो कुछ भी है भविष्य में उसका ही है । मुझे क्या फर्क पड़ता है । अंत में तो देना ही है । आप चाहोगे तो यह औपचारिकता शादी से पहले पूरी कर लेंगे । बोलिये ! आप क्या चाहते हैं ? ”
” मुझे आपकी जुबान पर पूरा भरोसा है लेकिन चाहता हूँ कि मन में कोई उलझन न रहे । इसलिए आप अपनी कंपनियों के पचास प्रतिशत शेयर हमारे नाम ट्रांसफर कर दीजिए । उसके बाद आप जब कहें दोनों की शादी हो जाएगी । ” कुटिल मुस्कान के साथ सेठ शोभालाल ने अपनी बात रख दी ।
अम्बादास पर जैसे कोई असर ही न पड़ा हो ,” कोई बात नहीं सेठ जी ! मैं साठ प्रतिशत शेयर आपको दूँगा । तीस प्रतिशत आप दोनों के नाम और तीस प्रतिशत सुशीला के नाम । बाकी के चालीस प्रतिशत की वारिस मेरे मृत्यु के उपरांत मेरी बेटी सुशीला ही होगी । लेकिन मैं आपको धोखे में नहीं रखना चाहता । मेरी बेटी का एक अतीत है । क्या आप वह जानकर भी उसे अपनी बहू बनाना पसंद करेंगे ? ”
मुँह में आ रहे लालच के लार को गटकते हुए सेठ शोभालाल ने खुशामदी लहजे में कहा ,” सुशीला आपकी बेटी है इससे ज्यादा और क्या चाहिए ? हमें मंजूर है । आप तैयारियाँ कीजिये । ”
” नहीं ! पहले आप मेरी बेटी का अतीत जान तो लीजिये । मैं नहीं चाहता कि कल आप मुझे झूठा कहें । ” कहने के बाद सेठ अम्बादास सोफे पर पहलू बदलते हुए कहने लगे ” तुम जानते ही हो हमारा अमेरिका के वर्जिनिया में भी एक बंगला है जहां हम सपरिवार कभी कभी छुट्टियाँ बिताने जाया करते हैं ! ”

क्रमशः

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।