गीतिका/ग़ज़ल

चुनाव की आँधी

लोकतंत्र की धज्जी उड़ गयी, इस चुनाव की आँधी में
शोर ‘चोर का’ चोर मचाए, इस चुनाव की आँधी में।

नेताओं ने इतना थूका, इक-दूजे के दामन पर
देश धँसा दलदल में अब तो, इस चुनाव की आँधी में।

वादों के गुबार का, अब तो इतना गहरा आलम है
आँखोंवाले अंधे हो गए, इस चुनाव की आँधी में।

जिनको ना मतलब था कोई, राम नाम और अल्ला से
मंदिर-मस्जिद शीश नवाते, वो चुनाव की आँधी में।

हरा-लाल-केसरिया-नीला, रंग कोई हो झंडों का
जातिवाद की सजी है टोपी, इस चुनाव की आँधी में।

ज़रा संभल कर कदम बढ़ाना, आग लगी है माटी में
कहीं सुलग जाए ना शबनम, इस चुनाव की आँधी में।

सिर मुढ़ाए ‘शरद’था बैठा, और मौसम ने साजिश की
बेमौसम ओले हैं पड़ते, इस चुनाव की आँधी में।

शरद सुनेरी