कविता

संस्कार और दिखावा

कल सपने में देखा-गुरुवर
पत्नी सहित पधारे.
“धन्यभाग्य हैं” कहकर हमने
उनके पाँव पखारे.
वे बोले-खुश रहे सदा तू
बस इतना बतला दे-
यों ही चरण कभी क्या धोये
तूने मात-पिता के?
यह सुनते ही नींद खुल गयी
हम मन ही मन रोये-
मात-पिता के कभी आज तक
हमने चरण न धोये.
सोच रहे हम संस्कार को
कब-कितना अपनाते ?
मगर दिखावा इतना करते
हरदम अव्वल आते.

डॉ. कमलेश द्विवेदी