बाल कविता

बाल कविता- कितने तारे?

आसमान में कितने तारे?
गिन गिन भैया हम तो हारे।
बादल में यूँ छुप जाते हैं।
जैसे हमसे शरमाते हैं।
कोई यहाँ कोई वहां छुपा रे।
हमसे जाता नहीं गिना रे।
गिनती ज्यूँ सौ तक जाती है।
नींद हमे फिर आ जाती है।
बड़के भैया प्यारे प्यारे।
अब तो तू ही गिन के बता रे।
भैया जी पर आफत आई।
देता कुछ भी नहीं सुझाई।
तभी उन्होंने जुगत लगाई।
और मुन्नू को बात बताई।
ज्यादा मुश्किल नहीं है प्यारे।
आसमान के गिनना तारे।
सिर पे जितने बाल तुम्हारे।
आसमान में उतने तारे।

*डॉ. मीनाक्षी शर्मा

सहायक अध्यापिका जन्म तिथि- 11/07/1975 साहिबाबाद ग़ाज़ियाबाद फोन नं -9716006178 विधा- कविता,गीत, ग़ज़लें, बाल कथा, लघुकथा