गीतिका/ग़ज़ल

दोहा गजल – समय हुआ विपरीत

आज   लगी संसार की, झूठी सी ये प्रीत।
सच को बस ठोकर मिली, समय हुआ विपरीत।।

बदले – बदले लोग हैं, बदली बदली चाल,
अनहोनी  की  आहटें,  होने लगी प्रतीति।

सरगम होंठों से विलग, समय-समय की बात,
समय पड़ा,मुँह मोड़ कर, रूठ गया मनमीत।

समय चक्र विपरीत था, प्यार हुआ बदनाम,
प्रेम भाव  दिल  से  मिटे,  देख फरेबी जीत।

धीरज मन में राखिये, लेकर  प्रभु का नाम,
घोर विपद जब आ पड़े, होना मत भयभीत।

जाने  कैसा देश वो, कहाँ  गए  तुम  यार
सपनों की दुनियां लुटी, लुटी हमारी रीत।

शुभदा बाजपेई