भाषा-साहित्य

सभ्यता  और शान का मापदंड —  अंग्रेज़ी भाषा ?? 

अंग्रेज़ो से हमें आज़ादी तो १९४७ में मिल गयी , लेकिन अंग्रेज़ो को छोड़ने के बाद हमने अंग्रेज़ियत नहीं छोड़ी. यहाँ तक की अंग्रेज़ी भाषा का ज्ञान और अंग्रेज़ी रीति रिवाज़ से जीवन जीना जैसे स्टेटस  सिंबल यानि जीवन का आधनिक मापदंड बन गया .हमारे बड़े बुज़ुर्गो ने इसे नकारने की कोशिश की, लेकिन आनेवाली नयी पीढ़ी ने इसे सभ्यता का मापदंड समझा और यह धीरे धीरे पनपता ही गया .देश में भी अंग्रेज़ी माध्यम के स्कूल में बच्चे का पढ़ना उच्च, और हिंदी भाषी स्कूल में पढ़ना दकियानूसी, सा होने लगा, इसी का फायदा उठाया गया  और हर तीज त्यौहार आदि को भी इसी रंग में रंगने की कोशिश की गयी .इसका सबसे ज्यादा असर पड़ा  जन्मदिन मनाने पर. आज लगभग हर जन्मदिन, वर्षगांठ केक काट कर , ताली बजा कर और हैप्पी हैप्पी करके मनाई जाती है,  स्कूल में क्रिसमस में बच्चो को सांटाक्लाज़ बना कर , उपहार बाँट कर मनाया जाता है, क्या आप सोच सकते हैं की अपनी भारतीय सभ्यता और संस्कारों के लिए किसी स्कूल में रामनवमी पर रामायण पाठ रखा जाता है, श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर झांकिया सजाई जाती हैं. ??

मैं अंग्रेज़ी भाषा या सभ्यता के विरुद्ध नहीं हूँ, उनकी संस्कृति और अनुशासन का सम्मान करता हूँ, पर यह नहीं चाहता की हम भारतीय अंग्रेज़ी भाषा और अंग्रेज़ी संस्कारों को अपने सनातन विचार धारा से बेहतर समझ कर उसे अपनी शान समझे.
जर्मनी, फ्रांस , रूस , चीन, जापान , कोरिया , पोलैंड , जैसे विकसित देश अपने देश में केवल अपनी ही भाषा और संस्कृति के बल पर तकनीकी क्षेत्र में इतना आगे बढ़कर दुनिया पर छा सकते हैं तो हम अपनी भाषा के बल पर क्यों आगे नहीं  बढ़ सकते.
हम भारतियों ने हमेशा ही हर विदेशी नाम और काम को ,वास्तु ,विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में बेहतर समझा है, और अपने में एक हीन भावना को जन्म दिया है, लेकिन आज के इस कंप्यूटर युग में इस में कोई अंतर नहीं रह गया है, हम भारतीय भी किसी प्रकार से किसी भी क्षेत्र में अब विश्व के किसी भी विकसित देश के बराबर चाहे न हो पर अब  तकनीक के क्षेत्र में उस से कम भी नहीं हैं, बात केवल सोच बदलने की है  और अपनी भाषा और संस्कृति को भी संग संग अपनाने की हैं,

हमारा भारत देश एक बहु प्रांतीय और बहु भाषायी  देश है, अगर प्राथमिक शिक्षा से ही मातृ भाषा और क्षेत्रीय भाषा को अनिवार्य कर दिया जाये और उच्च से उच्च शिक्षा को भी अंग्रेज़ी भाषा के स्थान पर अपनी भाषा में ही पढ़ाया जाये तो विदेशी नाम के मुक़ाबले  आने वाली   हीन भावना को समाप्त किया जा सकता है, लेकिन यह सब अनुशासन और मर्यादा में रह कर ही करना होगा,

अंग्रेज़ी भाषा को एक विषय के रूप में पढ़ना गलत नहीं है, यह एक अंतर्राष्ट्रीय भाषा है ,जिसका ज्ञान होना लाभ का विषय है , परन्तु इसे उच्च भाषा और अपनी हिंदी या क्षेत्रीय भाषा को निम्न भाषा समझना गलत होगा .आओ हम सब मिल कर इस पर विचार करें और अपनी हिंदी मातृ भाषा के उत्थान के लिए प्रयास करें.
जय प्रकाश भाटिया 

जय प्रकाश भाटिया

जय प्रकाश भाटिया जन्म दिन --१४/२/१९४९, टेक्सटाइल इंजीनियर , प्राइवेट कम्पनी में जनरल मेनेजर मो. 9855022670, 9855047845