मुक्तक/दोहा

दोहे-थोड़े चित्र-विचित्र

कल का सपना आपको, आज बताऊँ मित्र.
मैंने देखे ख़्वाब में, थोड़े चित्र-विचित्र.

राहुल कहते-दीजिए, हमें हार का श्रेय.
माँ-बहना सँग मिल हुये, हम सब “दत्तात्रेय”.

लगा ज्योतिरादित्य का, बहुत बड़ा दरबार.
सबके सँग खिंचवा रहे, सेल्फी बरखुरदार.

बुआ कहे-बबुआ उतर, तू गोदी से आज.
फूफा जैसे हो रहे, सब हाथी नाराज़.

काली के दरबार में, अपना माथा टेक.
ममता दीदी कह रहीं-माँ अब तू ही देख.

लिया दिग्विजय सिंह ने, भगवा वस्त्र लपेट.
साधू-संतों से रहे, बाँहें भर-भर भेंट.

मोदी जी के सामने, जोड़े दोनों हाथ.
झाड़ू वाला कह रहा- मुझे लीजिये साथ.

इल्मी-फिल्मी लोग सब, पहने हैं गणवेश.
कहते भारत की तरह, और न कोई देश.

डॉ. कमलेश द्विवेदी
मो.9415474674