कविता

मेरे पिता

बरगद की गहरी छांव जैसे मेरे पिता
जिंदगी की धुप में घना साये जैसे मेरे पिता
यदि ईश्वर हैं जमीं पर
तो धरा पर ईश्वर का रूप हैं मेरे पिता
शीतल पवन के झरने जैसे मेरे पिता
चुभती धुप में सहलाते मेरे पिता
बच्चो संग मित्र बनकर खेल खेलते मेरे पिता
उनको उपहार दिलाकर ख़ुशी देते मेरे पिता
बच्चो यूँ ही मुस्कराओ की दुआ देते मेरे पिता
संकट में पतवार बन खड़े होते मेरे पिता
आश्रय स्थल जैसे हैं मेरे पिता
बूंद बूंद सबको समेटते मेरे पिता
कभी महसूस हुआ की अँधेरा ही मुक्कदर हैं
देकर हौंसला कहते मेरे पिता
तुमको किसका डर हैं
गमों की भीड़ में हँसना सिखाते मेरे पिता
अपने दम पर तुफानो से लड़ना
किसी के आगे तुम नहीं झुकना
ये सिखलाते मेरे पितापरिवार की हिम्मत और विश्वास हैं
उम्मीद और आस की पहचान हैं मेरे पिता

शोभा रानी गोयल

शोभा गोयल

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