गज़ल
आज आईना मुझे दिखा ही दे
सच क्या है ये बता ही दे
या तो साहिल पे ले चल मुझको
या कश्ती मेरी डुबा ही दे
न आया है न वो आएगा
आखरी शमा भी बुझा ही दे
जो नहीं है नसीब में तेरे
दिल मेरे अब उसे भुला ही दे
नज़रअंदाज़ यूँ न कर मुझको
बात न कर, मुस्कुरा ही दे
मोड़ दर से न किसी को खाली
कुछ न दे पाए तो दुआ ही दे
— भरत मल्होत्रा