कविता

पंचवटी

हेममृग पंचवटी नियराय

सीता मात भ्रमित है फिर से

श्रीराम से यूँ बतराय ।

फिर से राम मानकर कहना

मृग पीछे जायेंगे

मारेंगे मारीच छलिया को

लौटेंगे लखन संग कुटिया को

सीता विहीन पायेंगे

देख अनिष्ट की आसंका

 जायेंगे मन ही मन घबराय ।

हेममृग पंचवटी नियराय ।।

रावण वेष बदलके फिर

हरण करे सीता का

भाव और कला पक्ष बिन

मूढ रचन करे कविता का

जैसे सूंई घड़ी की घूम

बार बार फिर आय ।

हेम मृग पंचवटी नियराय ।।

है निर्धारित ज्ञात सभी को

वनवास फिर हरण भी होना

रावण मरण जीतकर लंका

लौट सिंहासन वरण भी होना

हर त्रेता की अपनी कहानी

अब कलियुग भी दोहराय ।

हेममृग पंचवटी नियराय ।

व्यग्र पाण्डे

विश्वम्भर पाण्डेय 'व्यग्र'

विश्वम्भर पाण्डेय 'व्यग्र' कर्मचारी कालोनी, गंगापुर सिटी,स.मा. (राज.)322201