प्रहरी
वो सीमा का प्रहरी है,
किसी से कुछ न कहता है,
हर विपदा को सहता है,
वो केवल मौन रहता है।
हर उत्सव महोत्सव,
वो सीमा पर मानता है,
तुम दीपक जलाते हो,
वो दिल को जलाता है।
चाँदनी रात में अक्सर ,
वो ख़्वाबों को सजाता है,
अपना बिता हुआ बचपन,
ख़्यालों में वो लाता है।
अम्बर से एक तारा,
अचानक टूट जाता है,
साथ अपनों की यादों का,
पल भर में छूट जाता है।
आँखों में लिए सैलाब ,
घऱ वालों के लेकर ख़्वाब,
तूफानों से न डरता है,
तुम सोते हो,वो जगता है।
वो सीमा का प्रहरी है,
किसी से कुछ न कहता है,
हर विपदा को सहता है,
वो केवल मौन रहता है।
— विकास शाहजहाँपुरी