लेख – ‘राम’ शब्द की प्रासंगिकता
“राम नाम की एक आन्तरिक दुनिया हैं और एक बाहरी जो घटित हो रहा हैं इसका द्वंद्व ही वर्तमान समय में इसकी प्रासंगिकता और साम्प्रदायिकता को बयां कर रहा हैं।हालांकि राम नाम शब्द की मनःस्थिति को भीतर और बाहर से व्यक्त करना एक नाटकीय घटनाक्रम सा प्रतीत होता हैं तब जब व्यक्ति संघन अंधकार में डूबा हो।किन्तु हताशा ,पराजय का बोध,अकेलेपन में राम नाम की महिमा का सुखद अनुभूति देखने को मिलता हैं जिसमें दुःखी होने पर राम नाम का स्मरण करना स्वाभाविक हैं।किन्तु वहीं सामाजिक द्धंद्धात्मक स्थिति में राम नाम के उद्बोधन में एक ग्लानि के साथ अंतर्विरोध का नाटक प्रस्तुत करना पड़ता हैं जिसका कारण वर्तमान समय की राजनीतिक सांप्रदायिकता की सामूहिक भावना हैं ।क्योंकि राम नाम आंतरिक दुनिया में एक विराट परिकल्पना प्रस्फुटित करता हैं वहीं राम शब्द का प्रयोग भी आज की युगीन संवेदना में रहित हैं ।अनेक धर्म ग्रंथों के अनुसार राम का नाम ही कलयुग में भवसागर से पार करने वाला हैं ,त्रेता युग में हनुमान जी राम नाम के पत्थर के पुल /बांध बना देते हैं । कबीर दास जी राम के नाम मात्र से रामानंद जी को अपना गुरू स्वीकार कर लेते हैं । मतलब कि राम का नाम मात्र ही व्यक्ति को उसकी ऊचाॅइयों की महानता से परिचय कराता है और उसका समर्पण ही उसे समाधान की ओर इंगित करता है ।“राम का नाम आत्मभिव्यक्ति की खोज हैं और वही खोज ही उपलब्धि “। राम का नाम कोई दार्शनिक या सांस्कृतिक नाम नहीं अपितु पर व्यक्ति आत्मिक अनुभूति की एक धार्मिक संरचना जिसको सगुण रूप में अयोध्या के श्री राम को साक्षी रूप में स्वीकार करते हैं और यही से राम का नाम एक साम्प्रदायिक रूप धारण कर लेता हैं जो कि वर्तमान समय में राम शब्द की प्रासंगिकता को ही राजनीतिक,सामाजिक ,धार्मिक,वैचारिक असहिष्णुता के स्वरूप में उजागर कर रहा हैं ।
अतः राम नाम की महिमा को पर व्यक्ति का जानना अति आवश्यक हैं इसके लिए व्यक्ति को शिक्षित होना /करना चाहिए साक्षर होना पर्याप्त नहीं ।।
-– रेशमा त्रिपाठी