हे ईश् !
हे ईश् !
लोग तुम्हें ढूंढते हैं,
कभी किसी मंदिर में
कभी किसी मस्जिद में।
पर मैंने तुम्हें ढूंढा
अपने हर कर्म में
अपनी हर अभिव्यक्ति में।
लोग रोते हैं
कि तूने कुछ भी दिया नहीं,
मगर मैना देखा है
जो कुछ भी हो रहा है
जो कुछ भी
किसी को मिल रहा है।
सब तेरी रहमत से ही
मिला रहा है।
— राजीव डोगरा