कविता

कविता

स्निग्ध सुधियों के झकोरे तिक्त-सा आघात करते
बस तुम्हारी बात करते ;
आस का आभास दे, झकझोर जाते हैं ..
पल प्रतीक्षा के, ह्रदय कितना जलाते हैं ..

नयन चौखट पर धरे हैं
द्वार पर पलकें बिछाये
है प्रतीक्षित श्वाँस उर को
काश ! जीवन लौट आये

प्रत्येक आहट पर विकल हो,दौड़कर साँकल उठाते
सामने तुमको न पाते ;
दृष्टि के डग हो थकित फिर लौट आते हैं ..

है प्रथम स्पर्श की वह
गात में जीवित कहानी
अञ्जुलि में गिर पड़ा था
आँख से दो बूँद पानी

आज जब भी हो सजल दृग, कोर से आँसू बहाते
गेह अञ्जुल की न पाते ;
गिर-बिखरकर बीज दुख का रोप जाते हैं ..

याद है जब हाथ मेरे
थी तुम्हारी भाग्यरेखा
इक वचन में था मिटाया
नियति का सब लेख-लेखा

किन्तु विधि नें खेल अपना क्रूर सहसा है दिखाया
साथ किंचित रह न पाया ;
अब खुरचकर व्यर्थ रेखायें मिटाते हैं ..

ज्ञात है ना आओगे अब
धैर्य के जर्जर महल में
हो चुके खण्डहर ह्रदय के
धूलि-धूसर से निलय में

इसलिये हम ध्वंस-अवशेषों के सूने तिमिर उर में
पीर के अंतिम प्रहर में ;
थे जलाये आस के दीपक, बुझाते हैं ..

देह नश्वर है जगत में
नेह अक्षय है चराचर
खत्म हो यह पथ-पथिक
लेते विदा अंतिम नयनभर

रख तुम्हारे नाम की तुलसी अधर पर, प्राण तजते
देहरी को लांघ चलते ;
किन्तु आकर हिचकियों पर ठहर जाते हैं ..

— आराधना शुक्ला

आराधना शुक्ला

जन्मतिथि - 17/07/1995 पिता - श्री अरुण कुमार शुक्ला शिक्षा - परास्नातक पता - 125/84 'एल' ब्लॉक गोविन्द नगर कानपुर पिन - 208006 मो.नं. - 7398261421