कहानी

मैला रिश्ता

‘अब आपकी फाईल नहीं मिल रही तो मैं क्या करूँ ? इतना पुराना रिकाॅर्ड है । बेसमेंट में स्टोर रूम की अलमारियों में गर्द छान रहा होगा । उस गर्द में तो जा पाना ही नामुमकिन है । मुझे वैसे ही धूल से एलर्जी है । अब आपकी एक फाईल के लिए मैं खुद पर मुसीबत तो मोल नहीं ले सकता ।’ हाऊस टैक्स इंस्पैक्टर बसंत भाई से कह रहा था ।

65 वर्षीय बसंत भाई न्यायप्रिय, ईमानदार, शांतचित्त और दूसरों की हमेशा सहायता करने वाले एक सज्जन पुरुष थे । हर काम को हमेशा ही समय से या समय से पूर्व कर लेने में विश्वास रखने वाले बसंत भाई आज परेशान थे । वे हमेशा से ही अपने मकान का हाऊस टैक्स समय से भरते आ रहे थे । उन्हें अकारण मिले नोटिस ने परेशान कर दिया था । उन्होंने नोटिस का जवाब भी दे दिया था । पर विभाग वाले मान ही नहीं रहे थे । उन्हें विभाग में आने को कहा गया था । वे निश्चित समय पर विभाग में पहुँच गये थे । पर अभी वहाँ हाऊस टैक्स इंस्पैक्टर नहीं आया था । वह उसके कमरे में बैठे इन्तज़ार करते रहे । लगभग एक घंटे बाद हाऊस टैक्स इंस्पैक्टर वहाँ पहुँचा । बसंत भाई ने उसे नमस्ते की । बैठते ही इंस्पैक्टर ने नमस्ते का जवाब दिया । फिर अपने लिये चाय मंगाई और औपचारिकतावश बसंत भाई से भी चाय के लिये पूछा । बसंत भाई ने हाथ जोड़ कर मना कर दिया । इंस्पैक्टर ने कहा ‘मुझसे क्या काम है?’ बसंत भाई ने नोटिस की काॅपी और जवाब दोनों इंस्पैक्टर को थमा दिये । इंस्पैक्टर ने निगाह डालने के बाद कहा, ‘जनाब, आप अपनी जगह ठीक होंगे । पर यह नोटिस तब तक वापिस नहीं लिया जायेगा जब तक कि आपकी फाईल नहीं मिल जाती और सत्यापन नहीं हो जाता । बसंत भाई ने कहा ‘तो आप मेरी फाईल निकलवाने की कृपा करें ।’ इसी बात से इंस्पैक्टर बिफर गया था ।

बसंत भाई की परेशानी को ताड़ कर एक जूनियर अधिकारी ने उन्हें इशारे से अपने पास बुला कर कहा ‘आपने धूप में बाल काले नहीं किये हैं । आप को जीवन का अनुभव है । आप यह क्यों नहीं समझ रहे कि इंस्पैक्टर को आपकी फाईल ढूँढने में कितनी मेहनत करनी पड़ेगी । अब जो मेहनत करेगा उसे मेहनताना तो चाहिए न । जाइये आप उससे ठीक से बात कीजिए ।’ इंस्पैक्टर कनखियों से देख रहा था । बसंत भाई को अपनी तरफ मुड़ता देख कर वह अपनी टेबल पर पड़ी फाइलों में व्यस्त हो गया जैसे कि उसने उन्हें अपनी ओर आते देखा ही न हो । ‘सर’ बसंत भाई ने इंस्पैक्टर का ध्यान अपनी ओर खींचा । ‘अब क्या कहना चाहते हैं’ इंस्पैक्टर ने कहा । ‘सर, आपको मेरी फाईल ढूँढने में काफी मेहनत करनी पड़ेगी यह मैं समझ गया हूँ । आप फिक्र न करें मैं आपको आपका मेहनताना दूँगा । स्पष्ट कहिए ।’ इंस्पैक्टर की बाँछें खिल उठीं ‘पाँच हजार दे दीजिएगा ।’ बसंत भाई हैरान हो गये । ‘पाँच हज़ार, यह तो बहुत ज़्यादा हैं । सौ, दो सौ की बात तो ठीक होती ।’ इंस्पैक्टर ‘मज़ाक कर रहे हैं । स्टोर रूम में जाने के बाद जो मेरी हालत होगी उसका आप अंदाज़ा भी नहीं लगा सकते । आपकी फाईल ढूँढते ढूँढते मैं पूरा धूल से सन जाऊँगा । मैं मैला हो जाऊँगा । मेरे कपड़े खराब हो जायेंगे । उनका ड्राइक्लीन का खर्चा । आपकी फाईल ढूँढने में मेरा बहुत सारा समय अलग लगेगा । बाकी काम पैंडिंग हो जायेगा । कितना हर्जाना होगा । उसके आगे तो पाँच हज़ार भी बहुत कम हैं आप खुद ही समझदार हैं ।’ बसंत भाई बोले ‘भाई जी, मैंने अपनी बेटी की शादी भी करनी है । उसके लिए भी मुझे पैसे बचाने हैं । और आपने देख लिया है कि उक्त नोटिस मेरे लिए महत्वहीन है क्योंकि मेरा सारा रिकाॅर्ड अप-टू-डेट है । या तो आप मेरी अर्जी को सही मानकर नोटिस वापिस ले लीजिए और दर्ज कर लीजिए । मैं भी चैन से बैठ जाऊँगा ।’ इंस्पैक्टर आसामी को आसानी से कैसे जाने देता । ‘चलिए आपने अपनी बेटी की शादी की बात कही है । तो आप मुझे केवल तीन हज़ार दे दीजिएगा । आप दो दिन बाद आ जाइये ।’

बसंत भाई परेशान होते हुए घर पहुँचे । पत्नी को सारी बात बताई । वह बोलीं ‘क्या ज़माना आ गया है । जिस काम के लिए सरकारी अधिकारियों को वेतन मिलता है उसके लिए रिश्वत माँगते हुए उन्हें शर्म भी नहीं आती और फिर आप तो सारा काम समय से करने वाले हैं । आपने सभी टैक्स समय से भरे हैं । फिर भी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है । खैर छोड़ो, अब जो भी होगा देखा जायेगा । आपको यह बताना है कि हमारी बेटी के लिए एक रिश्ता आया है । लड़का अच्छे नामी खानदान से है, पढ़ा लिखा है और पक्की सरकारी नौकरी है । माता-पिता भी सरकारी नौकरी में हैं । मुझे तो सब कुछ ठीक लग रहा है । आते रविवार को मिलने की बात तय हुई है । आज तो अभी बुधवार है । बसंत भाई भी यह जानकर खुश हुए । उनकी परेशानी कुछ दूर हुई थी । बेटी के रिश्ते के लिए वह भी इंतज़ार में थे । उनकी बेटी भी सर्वगुणसंपन्न थी और वह कार्यरत भी थी तथा अच्छा वेतन ले रही थी । ‘चलो, जहाँ से भी रिश्ता आया है, जिसने भी बताया है उस पर तो विश्वास कर ही लेते हैं । पर एक बार परिवार के बारे में जानना जरूरी है । कोई दूसरा थोड़े ही जिम्मेदारी लेगा । ऐसा करते हैं एक बार मिल लेते हैं । अगर कुछ बात जँच जाती है तो फिर किसी तरीके से परिवार के बारे में भी मालूम करते हैं ।’ दोनों ने हाँ में हाँ मिलाई । इंस्पैक्टर से मिल कर आने वाली बात माँ ने बेटी को भी बताई । बेटी भी सुनकर दुःखी हुई । उसे अपने पापा की ईमानदारी पर गर्व था पर जब इंस्पैक्टर ही अड़ जाये तो कोई क्या करे ? सभी आपस में मिलकर रविवार को होने वाली मुलाकात की योजना बनाने लगे ।

शुक्रवार को बसंत भाई बताए हुए समय पर इंस्पैक्टर से मिलने जा पहुँचे । इंस्पैक्टर पहले से ही मौजूद था आखिर ऊपर की कमाई जो होनी थी । बसंत भाई के पहुँचते ही मुस्कुरा कर अभिवादन किया, ‘लीजिए साहब, अब आपने इतना कहा तो मैंने भी धूल भरे स्टोर में जाकर अपने कपड़े मैले करके आपकी फाईल ढूँढ ही निकाली । यह लीजिए आपके नोटिस पर आपका स्पष्टीकरण भी दाख़िल कर दिया । अब आपका नोटिस भी वापिस ले लिया गया है । आप चैन की नींद सोएँ । विभाग की तरफ से हुई असुविधा के लिए आपसे खेद प्रकट करता हूँ ।’ बहुत ही अनमने मन से बसंत भाई ने इंस्पैक्टर को लिफाफे में रखे 3000 रु पकड़ा कर उसका मेहनताना चुका दिया । इंस्पैक्टर उन्हें धन्यवाद कहता रहा पर वे बिना जवाब दिये ही वहाँ से लौट गये । उनका मन खिन्न था । जीवन में उन्होंने कभी किसी को रिश्वत नहीं दी थी ।

रविवार भी आ गया था । बसंत भाई के परिवार में हलचल थी । शाम को लड़के वालों से मिलने जाना था । सभी सदस्य तैयार होकर नियत समय और स्थान पर पहुँच गये । अभी लड़के वालों का परिवार नहीं पहुँचा था । ट्रैफिक में देर सबेर हो ही जाती है । रेस्तरां में जिस जगह बैठे थे वहाँ से प्रवेश द्वार सीधा नज़र आ रहा था वहाँ रोशनी भी अच्छी थी । कुछ ही देर में वहाँ एक व्यक्ति ने प्रवेश किया जिसे क्षण भर में पहचान कर बसंत भाई अपनी पत्नी से बोले, ‘देखो, अभी अभी जो आदमी आया है वही इंस्पैक्टर है जिसने मुझसे तीन हजार रु रिश्वत ली थी । अब यहाँ ऐश करने आया है ।’ उसकी पत्नी ने भी उसे देखा पर कुछ बोली नहीं सिवाय इसके ‘अब दिमाग से उस बात को निकाल दो ।’ तभी एक अन्य परिवार ने उस रेस्तरां में प्रवेश किया । उधर वह इंस्पैक्टर उठा । वह चलने ही लगा था कि उसके मोबाइल पर कोई फोन बज उठा और वह बात करने लगा । उस परिवार के प्रवेश करते ही उस परिवार के साथ आई महिला ने मोबाइल पर कोई नम्बर मिलाया । इधर बसंत भाई का फोन बज उठा । बसंत भाई ने फोन उठाया तो उधर से आवाज़ आई ‘हम पहुँच गये हैं । आप कहाँ हैं ?’ ‘हम उधर सामने की टेबल पर बैठे हुए हैं । आपका स्वागत है ।’ बसंत भाई ने कहा । यह वही परिवार था जिससे बसंत भाई का परिवार मिलने आया था । वह परिवार बसंत भाई के परिवार की ओर आ गया और सब ने एक दूसरे का अभिवादन किया । फिर बैठ गए । लड़का देखने में सुन्दर था । महँगे कपड़े पहने था और हाथों में कीमती घड़ी थी । एक दूसरे का परिचय होना शुरू हो गया था । ‘लड़के के पिताजी नहीं आये । वे क्या करते हैं ?’ बसंत भाई ने पूछा । ‘सरकारी अधिकारी हैं, आ चुके हैं, ज़रा फोन आ गया था, वो वहाँ फोन पर बात कर रहे हैं । बहुत अच्छे विभाग में हैं और बड़ी मेहनत और ईमानदारी से काम करते हैं । वेतन भी अच्छा पाते हैं । किसी चीज की कमी नहीं है । भगवान का दिया सब कुछ है हमें बस काबिल लड़की चाहिए और कुछ नहीं चाहिए । कोई दहेज नहीं ।’ रेस्तरां में अंधेरे का सा वातावरण होता है । अभी बातें चल ही रही थीं कि उस परिवार में से किसी ने कहा ‘लो, भाईसाहब भी आ गए हैं, यह लड़के के पिताजी हैं ।’ बसंत भाई ने उत्सुकता से देखा तो दंग रह गये और उधर लड़के के पिताजी का जब बसंत भाई से सामना हुआ तो वह आधे ही बैठे रह गये । न उनसे खड़े होते बना और न बैठते बना । हालत यह थी कि काटो तो खून नहीं । मरते क्या न करते बैठ गये । ज्यादा बोल नहीं पाये और यही कहते रहे कि ‘बच्चे आपस में बात कर लें । हमें तो केवल आशीर्वाद देना है ।’ काफी बातें हुईं । बसंत भाई की पत्नी भी यह नज़ारा देख चुकी थीं । कुछ देर बाद परिवार विदा हुए । घर पहुँच कर बसंत भाई ने चर्चा की । तब तक बेटी को भी इंस्पैक्टर के बारे में पता चल चुका था । वैसे वहाँ वह मन बना आई थी । पर पिताजी की बात सुनकर उसने अपना इरादा बदल दिया था । अभी बात चल ही रही थी कि बसंत भाई का फोन बजा । पिताजी ने फोन स्पीकर माॅड में डाल दिया ताकि सब सुन सकें । लड़के की माता जी का फोन था ‘हमें आपकी लड़की पसंद है, आपकी क्या राय है ?’ बसंत भाई ने विनम्रतापूर्वक जवाब दिया ‘माफ़ कीजिये । सब कुछ ठीक था पर हम स्टोर की धूल में रिश्ता मैला नहीं करना चाहते ।’ इतना कह कर बसंत भाई ने फोन रख दिया । उधर श्रीमती जी इंस्पैक्टर साहब से कह रही थीं ‘पता नहीं क्या कह रहे थे … स्टोर … मैला …. आपको समझ में आया । आप भी तो सुन रहे थे न । फोन स्पीकर माॅड पर था । पता नहीं कैसे लोग हैं ।’ इंस्पैक्टर साहब चुपचाप सिर झुकाये खड़े थे । इस बार उन्हें मैला होने की बहुत ज्यादा कीमत मिल गई थी ।

सुदर्शन खन्ना

वर्ष 1956 के जून माह में इन्दौर; मध्य प्रदेश में मेरा जन्म हुआ । पाकिस्तान से विस्थापित मेरे स्वर्गवासी पिता श्री कृष्ण कुमार जी खन्ना सरकारी सेवा में कार्यरत थे । मेरी माँ श्रीमती राज रानी खन्ना आज लगभग 82 वर्ष की हैं । मेरे जन्म के बाद पिताजी ने सेवा निवृत्ति लेकर अपने अनुभव पर आधरित निर्णय लेकर ‘मुद्र कला मन्दिर’ संस्थान की स्थापना की जहाँ विद्यार्थियों को हिन्दी-अंग्रेज़ी में टंकण व शाॅर्टहॅण्ड की कला सिखाई जाने लगी । 1962 में दिल्ली स्थानांतरित होने पर मैंने दिल्ली विश्वविद्यालय से वाणिज्य स्नातक की उपाधि प्राप्त की तथा पिताजी के साथ कार्य में जुड़ गया । कार्य की प्रकृति के कारण अनगिनत विद्वतजनों के सान्निध्य में बहुत कुछ सीखने को मिला । पिताजी ने कार्य में पारंगत होने के लिए कड़ाई से सिखाया जिसके लिए मैं आज भी नत-मस्तक हूँ । विद्वानों की पिताजी के साथ चर्चा होने से वैसी ही विचारधारा बनी । नवभारत टाइम्स में अनेक प्रबुद्धजनों के ब्लाॅग्स पढ़ता हूँ जिनसे प्रेरित होकर मैंने भी ‘सुदर्शन नवयुग’ नामक ब्लाॅग आरंभ कर कुछ लिखने का विचार बनाया है । आशा करता हूँ मेरे सीमित शैक्षिक ज्ञान से अभिप्रेरित रचनाएँ 'जय विजय 'के सम्माननीय लेखकों व पाठकों को पसन्द आयेंगी । Mobile No.9811332632 (Delhi) Email: mudrakala@gmail.com