राजनीति

मोदी के मतलब

प्राचीन सभ्यताओं में से भारतीय सभ्यता ही सम्भवतः एकमात्र जीवित सभ्यता हैकिन्तु विकृत रूप में। महाभारत युद्ध से भी लगभग १००० वर्ष पूर्व से यह ह्रास को प्राप्त होने लगी थीअर्थात ६००० वर्ष पूर्व से। उसके पूर्व वैदिक सभ्यता ने जनमानस को सर्वांगीण विकास की ओर अग्रसर किया जिसमें सांसारिक और आध्यात्मिकदोनों का ही सन्तुलित रूप में समावेश था – जिसे धर्म का रूप कह सकते हैं। धर्म का आशय सार्वभौमिक सिद्धांतों से है जो एक समाज को सभ्य ढंग से जीवित रखने में सक्षम हैं – इसे मानव धर्मया मानवतावाद भी कह सकते हैं; किन्तुयह कदापि मजहबपन्थरिलिजन नहीं कहा जा सकता है। मनु ने लिखा है – न हि सत्यात्परो धर्मः – सत्य से परे कोई धर्म नहीं है। यदि एक समाज/राष्ट्र में धर्म की स्थापना हो गयी है तो एक मानक यह हो सकता है कि एक रूपवती लावण्यवती षोडशा सुन्दरी स्वर्णाभूषणों से लदी नगर के मुख्य मार्ग पर आधी रात में निर्भय और निश्शंक ऐसे स्वच्छन्द विचर सकती है जैसे कि वह अपने बड़े भाई के घर में हो। धर्म का सही आशय समझना आवश्यक है कि हम विषय पर विचार को आगे बढ़ा सकें। स्पष्टतः आज के मजहब कभी न कभी धर्म से विपरीत दिशा की ओर चले जाते हैंदुर्भाग्य से हिदुत्व की भी यही गति है। यह तथ्य से परे नहीं है कि आप एक नास्तिक से मिलते हैं जो एक मजहब को मानने वाले व्यक्ति की अपेक्षा बेहतर व्यक्ति होता है। धर्म और मजहब की चर्चा को पीछे छोड़ कर अब हम विषय पर चलते हैं।  

धर्म के ह्रास का परिणाम आज का हिन्दुत्व है। महाभारत के पूर्व तक अनेक सुधारकों ने धर्म के ह्रास को रोकने का यत्न किया किन्तु पूरी तरह से सफल नहीं हुए। तत्पश्चात शंकर ने जनमानस को वेदों की ओर ले जाना चाहा किन्तु वे उपनिषद तक ही पहुंचा सके। शेष कार्य की पूर्ति १९ वीं शताब्दी में दयानन्द सरस्वती ने की जब वे वेदों को पुनः भारतीय जनमानस के मध्य गौरवपूर्ण स्थान दिला सके। इस अवधि में राजनैतिक स्तर परउपरोक्त ह्रास के कारण भारत में विभिन्न स्तर पर आपसी फूट के लक्षण दीखने लगे थे कि विदेशी शक्तियां मुंह बाये खड़ी थीं। लगभग २३०० वर्ष पूर्वचाणक्य ने चन्द्रगुप्त को तैयार किया कि विदेशी शक्तियों को मुंहतोड़ उत्तर दिया जा सके। तथापिकुछ काल पश्चातभारत पर विदेशी शासन आ गया। अन्ततः१९४७ में भारत स्वतंत्र हुआ।

किन्तु१९४७ के नेतृत्व ने उस काल के जोश का लाभ न उठाते हुए भारतीय संस्कृति के मुख्य बिंदुओं की अनदेखी की और बाद के ६७ वर्षों में राजनीति जातिगतमजहबगत भेदभावों को रेखांकित करने लगी। अनवरत नयी पार्टियां अपने वोट बैंक को स्थायी बनाने के उद्देश्य से निहित स्वार्थों के चलते जनमानस को बाँटने में ही तुली रहीं। परिणामतःएक ऐसी भ्रष्ट मानसिकता ने दीमक की तरह देश के हर अंग को खा लिया जहाँ मात्र स्वार्थसिद्धि ही प्रमुख थी और राष्ट्रहित को ताक पर रख दिया गया था – शीर्ष स्तर के राजनीतिक गलियारों से निकल कर सामान्य नागरिक तक को इसने दबोच रखा था। दिल्ली के बड़े राजनेता बड़े घोटालों में लिप्त थे और छुटभैयों को अपने स्थानीय स्तर पर दादागिरी करने की स्वतंत्रता थी। लोकतन्त्र लूटतन्त्र में बदल गया था। याइसे माफियातंत्र कह सकते हैं। प्रत्येक व्यक्ति एक विशेष लाभार्थी वर्ग का हिस्सा बन गया था और राष्ट्रहित से किसी को कोई सरोकार नहीं था। हर भारतीय बिकाऊ था – बस मूल्य का अन्तर था – कुछ रुपयों से ले कर थैलों भरी नगदी चाहिए और आप किसीको भी खरीद सकते थे। किसीको देश की चिंता नहीं थी। यह सड़न यहाँ तक दुर्गन्ध दे रही थी कि पडोसी देश ने भारत के हजार घावों से खून बहा कर मारने की नीति बना रखी थी। भारत के हर भूभाग में माफिया तन्त्र सुशोभित था, विभिन्न रंगों में। हर भारतीय चाहे-अनचाहे इसका अंग बन गया थासिवाय मुट्ठी भर लोगों के जो इस पराभव को दर्शक के रूप में देखने को विवश थे।

ऐसी अवनति के कालखण्ड में नरेन्द्र मोदी ने सबका साथ सबका विकास के नारे पर देश की बागडोर २०१४ में सम्हाली थी। विकास की दिशा में उनके योगदान और राष्ट्रहित में किये गए अन्य कार्यों का वर्णन करने की कोई आवश्यकता नहीं है। मोदी के मतलब यथार्थ में कहीं और ही छिपे हुए हैं। गरीब को रोटीकपड़ामकान से मतलब था और मोदी ने अपने वचन का निर्वाह किया भी। किन्तुउनका असली चमत्कार था कि पाँच वर्षों में ही देश को भ्र्ष्टाचाररूपी दीमक से मुक्ति दिलायी कि देशवासी धर्म की महत्ता को समझने लगे – सच्चाई और ईमानदारी। पाँच वर्षों में कैबिनेट स्तर पर कोई घोटाला न होने की किसी ने भी सोची नहीं थी और ऐसा कर के दिखाया। इसका प्रभाव निचले स्तरों पर भी दिखने लगा है।

हम कुछ संख्याओं का उपयोग करते हुए चर्चा को आगे बढ़ाते हैंसंख्याएँ मात्र काल्पनिक ही हैं। २०१४ में झूठ और बेईमानी का बोलबाला था कि मानिये १०% जनता ईमानदार थी – धर्म के मार्ग पर थीजैसे कि हम एक अति पिछड़े असभ्य देश में हों। विगत मात्र ५ वर्षों में यह संख्या २०% हो गयी होगी। आगामी दस वर्षों में यह ४०-५०% तक पहुंच सकती है जो आज के यूरोप-अमेरिका का स्तर है। कल्पना कीजिये उस गौरव की अनुभूति की जब एक भारतीय सिर उठा कर चल सकेगा कि हम उस देश के वासी हैं जहाँ सच्चाई और ईमानदारी का अंतर्राष्ट्रीय मापदण्ड शोभायमान हैभले ही हम तब भी विकासशील ही क्यों न कहलायें। मोदी के मतलब के चलते आगे के दस वर्षों में हमारा धर्म का स्तर भारत को जापान और स्कैंडेनेविया के देशों की कतार में खड़ा कर सकता है। मोदी के वास्तविक मतलब को समझने के लिए यह समझना आवश्यक है कि भारत दो पटरी पर तीव्र गति से चल रहा है – पहली पटरी भौतिक विकास (अभ्युदय) से संबंधित है तो दूसरी पटरी धर्म को धारण करने से संबंधित है – आंतरिक स्वच्छता द्वारा सच्चाई और ईमानदारी को बढ़ावा देना। ऐसा करते हुएविभाजन की सारी दीवारें ढह गयी हैं – जातिवादमजहबवादआदि सबको देश विदाई दे रहा है। अब तो माफियातंत्र के पास कोई अवकाश नहीं है – सुधर जाओ या जेल में जाओ। २०१४ का आकलन ऐसे किया जा सकता है कि माफिया ने भारतीयों को ऐसी मानसिकता में जकड़ दिया था जैसे कि भ्रष्ट गतिविधियों का होना सामान्य बात है – हुआ तो हुआ। तो२०१९ ऐसे याद किया जायेगा कि जनता ने साहसपूर्ण हुंकार भरी हो – अब बहुत हुआ। करोड़ों भारतवासी अब राष्ट्रहित को भी देखने लगे हैं कि राष्ट्रहित में ही मेरा हित है। उन्होंने तो घोषणा भी कर दी है कि अब भारत में दो ही वर्ग हैं – गरीब और गरीबों को गरीबी से बाहर निकालने वाले। उन्हें सबका विश्वास चाहिए – सबका साथसबका विकास के नारे के साथ सबका विश्वास भी जुड़ गया है। अब भारत को विभाजित करने वालों को मुंह की खानी पड़ेगी।

आइयेनिष्पक्ष हो कर विचार करें। भारत के प्रधान मंत्री में अपेक्षित गुणों की एक वृहद् तालिका बनाते हैं :- कर्मठईमानदारीबुद्धिमत्तादुष्टों का दमन करने की सामर्थ्यदेशवासियों को एकजुट कर राष्ट्रहित में संलग्न करने की क्षमतावक्तृताइत्यादि। मोदी का मतलब है कि इन सब गुणों का उनमें समुचित समावेश है। निकट इतिहास में ऐसा व्यक्ति उत्पन्न हुआ नहीं दीखता है। १९४७ में ऐसा कोई नायक होता तो भारत को ये दुर्दिन नहीं देखने पड़ते। १९७७ में भी ऐसे एक नायक की कमी रह गयी थी। लेकिन २०१४-१९ ने जो देखा हैवह अत्यन्त विलक्षण है। जनता ने जो जनादेश दिया हैअब भारत का यह मार्ग अपरिवर्त्तनीय है – इसे कोई ताकत बदल नहीं सकती है। अतः मोदी का मतलब समझना हम सबके लिए वांछनीय है जिससे कि हम समझ सकें कि भविष्य के गर्त में क्या छिपा हुआ है। प्रायः महापुरुषों में तुलना नहीं की जानी चाहिए किन्तु मोदी का मतलब भली प्रकार से समझने के लिए यह आवश्यक है। आधुनिक भारत में गांधीजी के योगदान की सराहना की जानी चाहिए। किन्तुनेताजी बोस और सरदार पटेल को अनदेखा कर के नेहरू-गाँधी वंश को भारत पर थोप कर उनसे जो भूल हुई उससे देश को व्यापक क्षति हुई। अतःकह सकते हैं कि मोदी = गांधीजी – उनकी भूल। कुछ और पीछे जाएँ तो कह सकते हैं कि मोदी = चाणक्य + चन्द्रगुप्त।  

वैश्विक स्तर पर भारत अपना उपयुक्त स्थान पाने की ओर अग्रसर है। आने वाले वर्षों में मोदी के नेतृत्व में या उनसे प्रभावित हो कर विश्व में व्यापक फेर-बदल होंगे। अभिप्राय यह है कि धर्म की नये स्थानों में स्थापना होगी और उसकी ज्योति की तीव्रता में वृद्धि होगी। मोदी का सही मतलब जानने के लिए आवश्यक है कि हम नरेन्द्र मोदी को मोदी नंबर एक मानें। जैसेभारतीय जनमानस इस बात से अनभिज्ञ है कि भारत मात्र विकास की ओर ही नहीं बढ़ रहा अपितु इसके साथ देश में सच्चाई और ईमानदारी भी बढ़ रही है। हो सकता है कि जनता को ईमानदारी से मतलब न हो किन्तु बिना ईमानदारी के विकास जब कभी भी धूमिल हो सकता हैदेश पुनः शोषक और शोषित के दो वर्गों में विभक्त हो जायेगा। वैसे हीहमें भी आश्चर्य नहीं होना चाहिए यदि मोदी नंबर एक को इस बात का भान नहीं है कि उनके प्रेरणा स्रोत विवेकानंद और गीता भी तब ही बन पाए जब दयानन्द और वेद की प्रेरणा उपलब्ध थी। हम भविष्य के मोदी नंबर दो को देख सकते हैं जो दयानन्द और वेद से प्रेरित हो कर भारत को विश्व का ज्योतिस्तम्भ बना कर २१वीं  सदी में सकल मानवता को विश्व-प्रेमविश्व-बंधुत्वविश्व-शांति के बहुप्रतीक्षित गन्तव्य पर पहुंचा दे। यह तो अब अच्छी तरह से स्पष्ट हो गया है कि सारे मजहब (जिसमें हिंदुत्व भी सम्मिलित है)और विभिन्न वाद (यथासाम्यवादपूंजीवादसमाजवाद इत्यादि) विफल हो चुके हैं और शुद्ध धर्म – सत्य पर आधारित जिसमें पदार्थ विद्या और अध्यात्म का समुचित समावेश है – ही मनुष्य को सनातन आकांक्षाओं से पूरित कर सकते हैं। कदाचितमोदी नंबर एक ही निखर कर मोदी नंबर दो बन जाये। २०१४-१९ में हमने मोदी को जाना है२०१९-२४ में हमें मोदी के मतलब को जानना है। 

लेखक – डॉ. हरिश्चन्द्र (ह्यूस्टनअमेरिका)