गीतिका/ग़ज़ल

वक्त

वैसे तो वक्त ये हर पल चलायमान होता है
सवारी पे ये अपनी आन बान शान होता है
मगर नजाने क्यूं येएक ज़माने सेहै यूं ठहरा
खड़ा है एक जगह पे जैसे के बेजान होता है
न आएंगे हमें मालूम है फिर भी न जाने क्यूं
निगाहों में वही दीदार का अरमान होता है
दिलों के नूर न देखे मुखौटों की हंसी को जो
हकीकत मान ले वाईज़ बड़ा नादान होता है
भले तन्हाई है खामोश अश्कों का है कारवां
मेरे रहवर का फ़ैज़ मेंरा निगहबान होता है
हुये हैं रुह में शामिल बनाके जबसे वो बसर
चराग़ों के बिना रौशन ये अब ऐवान होता है
पुष्पा अवस्थी “स्वाती” 

*पुष्पा अवस्थी "स्वाती"

एम,ए ,( हिंदी) साहित्य रत्न मो० नं० 83560 72460 pushpa.awasthi211@gmail.com प्रकाशित पुस्तकें - भूली बिसरी यादें ( गजल गीत कविता संग्रह) तपती दोपहर के साए (गज़ल संग्रह) काव्य क्षेत्र में आपको वर्तमान अंकुर अखबार की, वर्तमान काव्य अंकुर ग्रुप द्वारा, केन्द्रीय संस्कृति मंत्री श्री के कर कमलों से काव्य रश्मि सम्मान से दिल्ली में नवाजा जा चुका है