कविता

कलियां ही ग़र तुम तोड़ोगे

कलियां ही ग़र तुम तोड़ोगे
तो पुष्प कहाँ से लाओगे।
अपना सूना आँगन फिर,
तुम किससे महकाओगे।
क्यों निर्मम हत्याएँ तुम,
अविकसित कलियों की करते हो।
क्यों नन्हें नन्हें पग चिन्हों से,
तुम गलियां सूनी करते हो।
ये कलियां ही विकसित ,
होकर एकदिन पुष्प बनेंगी।
किसी कुंवारे यौवन के संग,
जब ये सुन्दर सृष्टि रचेगी।
सारा अम्बर पुनमी होगा,
चन्दा मन्द मन्द मुस्कुरा येगा।
तारों की जगमग होगी,
जब इनका प्रीतम आयेगा।
साकार कल्पना करने वाली,
कलियां ही ग़र तुम तोड़ोगे
तो पुष्प कहाँ से लाओगे।
अपना सूना आँगन फिर,
तुम किससे महकाओ गे।
क्यों निर्मम हत्याएँ तुम,
अविकसित कलियों की करते हो।
क्यों नन्हें नन्हें पग चिन्हों से,
तुम गलियां सूनी करते हो।
ये कलियां ही विकसित ,
होकर एकदिन पुष्प बनेंगी।
किसी कुंवारे यौवन के संग,
जब ये सुन्दर सृष्टि रचेगी।
सारा अम्बर पुनमी होगा,
चन्दा मन्द मन्द मुस्कुरा येगा।
तारों की जगमग होगी,
जब इनका प्रीतम आयेगा।
साकार कल्पना करने वाली,
ये सब रंग रलियां हैं।
सृष्टि कि रचना करने वाली,
ये नाज़ुक कलियां हैं।

— विकास शाहजहाँपुरी

विकास शाहजहाँपुरी

नाम-विकास सिंह, पिता का नाम-ओमवीर सिंह जन्मतिथि-15अगस्त1996 पता-शाहजहाँपुर ,(उप्र) पिन न0 242001 शिक्षा-बी0ए हिंदी साहित्य,अर्थशास्त्र से, वर्तमान में,:- आर्मी सोल्जर , विभिन्न समाचार पत्र,पत्रिकाओं में, प्रकाशित 200 से अधिक रचनायें,, लेखन की शुरुआत,,12 वर्ष की आयु से, प्रिय कवी:-जयशंकर प्रसाद। Email ID -yuvasahityakar@gmail.com मो0न0 9451721001 WhatsApp n0 9875542047 मेरी सफलता का सूत्र,, दुनियां मेरे बारे में क्या सोचती है, मैं ये नहीं सोचता हूँ, मुझे जो अच्छा लगता है, मैं वो ही सोचता हूँ।

One thought on “कलियां ही ग़र तुम तोड़ोगे

  • शशांक मिश्र भारती

    बहुत सुन्दर व प्रभावपूर्ण कविता विकास जी बधाई

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