सामाजिक

नैतिकता का गिरता स्तर

कहा जाता है कि धरती पर मनुष्य ही श्रेष्ठ है पर आज के हालात से तो लगता है कि वो सबसे निम्न है। जानवरों का मस्तिष्क इतना तेज नही होता कि उसे विवेक,धर्म,अधर्म और उचित वा अनुचित का बोध हो सकें। हम मनुष्यों में बुद्धि और विवेक दोनों है।हमारे अपने अपने धर्म है और सब से ऊपर की हमारे पास न्यायालय है और न्याय व्यवस्था को चलाने के लिए सहयोगी व्यवस्था है, जिसमें पुलिस अधिकारियों से ले कर सैनिक दल और संसद भी है, जिस का हम सब को बड़ा गर्व है। पर आज कल हो रही घटनाओं की जितनी निंदा की जाए वह कम है।
हर रोज किसी मासूम ,दुधपीती बच्ची के साथ बर्बरता का किस्सा सामने आ जाता है। कोई दो महीने ,तो कोई छः महीने की बच्ची से अपनी शरीरिक हवस की पूर्ति कर रहा है। जिस देश मे औरत को शक्ति रूप में पूजते थे और कन्या को साक्षात देवी रूप में देखते थे। आज उन हँसती, खेलती गुड़ियाओं के साथ बर्बरतापूर्ण कृत्य नित प्रतिदिन घटित हो रहे है। कार्य भी ऐसा की हवस भी शर्माकर पानी- पानी हो जाये। क्या आदमी ने संयम इस कदर छोड़ दिया कि उसे मासूम और निबल पर भी क्रूरता करते लज्जा नही आती???

जानवरों में भी समझ होती है कि बच्चे और बड़ो में क्या अंतर है?? हम सब जानते है कि जानवरों का कोई धर्म नही होता।उनकी कोई पाठशाला नही होती। उन्हें आत्मसुरक्षा सीखने वाली कोई संस्था या क्लासेस नही होती। फिर भी जानवरों के समूह में हमने किसी बच्चे के बलात्कारी को नही देखा। कभी कोई शिशु बलात्कार के उत्पीड़न का शिकार नही हुआ। आश्चर्य तो इस बात का है कि जानवर समुदाय जंगल मे हो या किसी गांव या फिर किसी महानगरी का ही हिस्सा क्यों ना हो। उस पर हवस इतनी हाबी नही होती कि वो जन्म लेते ही या किसी दुधपिते हुए बच्चे के साथ कोई शारिरिक जबर्दस्ती कर दे। जब कि जानवरों की न तो कोई न्याय शाला है, न कोई न्यायालय और ना ही कोई दंड संहिता । फिर उन में ये भय कैसे होता है कि हम किसी बच्चे के साथ दुर्व्यवहार नही करें??
जानवर तो तन भी नही ढकता है, उसे जिस्म को छुपाने की भी आवश्यकता नहीं पड़ती।फिर भला क्या उन को नग्न शरीर देख कर, क्या कामवासना नही जगती? कैसे उन की इंद्रियों पर संयम होता है? जब कि उन्हें फांसी या जैल या जुर्माने का भी भय नही होता। फिर वो ये सब दरिन्दगी क्यों नही करते?? ऐसी कौन सी बात है जो उन्हें अपराध करने से रोकती है और उन में विवेक नही होता, फिर कौन सी शक्ति है जो उन्हें सही और गलत में भेद समझाती है?? तो आइए इन पहलुओं पर भी विचार करें।
जानवरों का कोई कानून व्यवस्था नही होते हुए भी सब कानून व्यवस्था में रहते है क्योंकि जब भी कोई किसी बच्चे पर या किसी कमजोर पर आक्रमण करना चाहता है तो उस समूह के अन्य सदस्य उस को इस के लिए दंडित करते हैं और पहले चेतावनी देते है न,अगर फिर भी उग्रता दिखाए तो सब मिलकर उसे मौत के घाट उतार देते है। उनकी ऐसी व्यवस्था होती है जिस में किसी पुलिस दल या सेना के ना होते भी ,सभी एक नियम व्यवस्था में रहते हैं। तो आप सभी तय करें और बताये कि कौन निम्न कौन श्रेष्ठ ????

हम किस प्रगति की राह पर अग्रसर है, जहाँ जिस्म और हवस में कोई भी व्यवस्था नही बची। औरत से ले कर ,बच्चियों को अपनी हवस का शिकार बना रहे ,उस पुरुष को उसी भांति फन कुचल कर मारा जाना चाहिए ,जैसे हम घर मे घुसे हुए सांप को मार देते हैं। वरना ये नाग हमारे परिवार की किसी बच्चे और बड़े को नही छोड़ेगा।।

संभल ए इंसान कि वक्त के दायरे मत भूल। जिन बच्चियों को पूजना होता है, उन की आबरू ना लूट। ना लूट अस्मत इन मासूमों की तुझे सूली पर भी मौत ना मिलेगी। गर्त में गिरने वाले तुझे कोई जन्नत, कोई हूर ना मिलेगी। अपराधी का कोई धर्म नही होता,ना वो हिन्दू होता है ना मुस्लिम होता हैं। तो धर्म की राजनीति छोड़ो और देश को दुनियाभर में शर्मशार होने से बचाओ। जिस देश मे कन्या पूजी जाती था,आज उस की बोटियां नोची जाती हैं। फट जाता कलेजा धरती का,जब बेटियां रुँधी जाती हैं।।

संध्या चतुर्वेदी 
अहमदाबाद, गुजरात

संध्या चतुर्वेदी

काव्य संध्या मथुरा (उ.प्र.) ईमेल sandhyachaturvedi76@gmail.com