मुक्तक/दोहा

मुक्तक

कभी मैं न रहूं, पीछे से मेरा नाम लेना तुम
जो लम्हें साथ में गुजरे वो लम्हें थाम लेना तुम ।
कभी जब याद आऊं और तुम्हारी आंख भर आए
हवाओं से, घटाओं से मेरा पैगाम लेना तुम ।।

साधना सिंह

साधना सिंह

मै साधना सिंह, युपी के एक शहर गोरखपुर से हु । लिखने का शौक कॉलेज से ही था । मै किसी भी विधा से अनभिज्ञ हु बस अपने एहसास कागज पर उतार देती हु । कुछ पंक्तियो मे - छंदमुक्त हो या छंदबध मुझे क्या पता ये पंक्तिया बस एहसास है तुम्हारे होने का तुम्हे खोने का कोई एहसास जब जेहन मे संवरता है वही शब्द बन कर कागज पर निखरता है । धन्यवाद :)

One thought on “मुक्तक

  • डाॅ विजय कुमार सिंघल

    बहुत सुंदर मुक्तक !

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