कविता

स्वयंप्रभा

निरर्थक साधनाओं में कैद होता संसार
तुमको तलाशता सुदूर तीर्थों में
और मैं लिखती हूं
तुम्हारी विस्तृत हथेली पर
वो तमाम प्रणय गीत
जो मेरा ह्रदय गाता है।

व्यर्थ कर्मकांडों के वशीभूत होता संसार
तुम को ढूंढता बेमतलब क्रियाओं में
और मैं निमग्न होती हूं
उस चरमबिंदु पर
जहां आसन-रत हो
प्रेम ईश्वर हो जाता है।

अर्थहीन आडम्बरों से आच्छादित होता संसार
तुमको देखता निर्जीव पाषाणों में
और मैं तन्मय होती हूं
हृदय के उस घाट पर
जहां हिम-द्रवित हो
गंगा का उद्गम हो जाता है।

मिथ्या अर्चन से सम्मोहित होता संसार
तुमको पुकारता उन्मादी कोलाहल में
और मैं मल्हार रचती हूं
अंतस के उस सभा मंडल में
जहां घनगर्जित हो
जीवन स्वयंप्रभु हो जाता है।

— अनुजीत

अनुजीत 'इकबाल'

पता- मकान नम्बर 4, राम रहीम एस्टेट, मलाक रेलवे क्रोसिंग के पास, नीलमथा, लखनऊ, उत्तर प्रदेश- 226002 मोबाइल नंबर-9919906100 ईमेल पता – anujeet.lko@ gmail.com जॉब- एक्स इंग्लिश लेक्चरर किताबें प्रकाशित- 4 किताबों के नाम- ● Radical English for nurses ● Applied grammar and composition ● The inner shrine { novel} ● Psychology and psychiatry for nurses सम्मान- लखनऊ में 16 वें पुस्तक मेले द्वारा आयोजित राष्ट्रीय स्तर की अंग्रेजी कविता लेखन प्रतियोगिता में प्रथम स्थान एवं सम्मान। ● विभिन्न पत्रिकाओं और पोर्टल्स में कविताओं का प्रकाशन शौक- ●अंग्रेजी एवं हिंदी की कविता, कहानियां लिखना। ● ऐक्रेलिक पेंटिंग बनाना (अध्यात्म पर) ● शास्त्रीय संगीत सुनना