लघुकथा

घाटे का सौदा

लाटरी लग गयी थी रानी की । एकदम खरा सौदा । कोई नीच काम भी नहीं था कि उसकी आत्मा उसको कोसती। करना ही क्या था… बस अपनी कोख किराए पर ही तो देनी थी, वो भी बस नौ महीने के लिए और बदले में सब दुःख-ग़रीबी खत्म।

सब यंत्रवत चल रहा था, पर जबसे पेट में पलते बच्चे ने अपने अस्तित्व का एहसास दिलाना शुरु किया था, क्यों उसका मन बगावत करने लगा था? क्यों उसकी बेचैनी बढ़ने लगी थी और क्यों उसे उस अजन्मे बच्चे पर वैसे ही ममता लुटाने का मन हो रहा था जैसे वह अपने बच्चों रधिया और बाबू पर लुटाती थी। पांच सितारा अस्पताल की सुविधाएं भी ना जाने क्यों अब उसे कैद जैसी लग रहीं थीं ।

हाँ, खुश है वो कि अब उसके परिवार को कभी भूखा नहीं सोना पड़ेगा, रधिया और बाबू स्कूल जा सकेंगे, उसके पति पूरन को काम के लिए दूजे शहर नहीं जाना पड़ेगा और पूरा परिवार साथ रहेगा। पर… पर उसका ये बच्चा? अपने पेट में पल रहे बच्चे की धडकनों को महसूस करते हुए उसे ये सौदा.., बहुत ही घाटे का सौदा लग रहा था ?

अंजु गुप्ता

*अंजु गुप्ता

Am Self Employed Soft Skill Trainer with more than 24 years of rich experience in Education field. Hindi is my passion & English is my profession. Qualification: B.Com, PGDMM, MBA, MA (English), B.Ed