लघुकथा

योग से जुड़ो, स्क्रीन से मुड़ो

अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस 21 जून पर विशेष
पॉर्क में सैर करते हुए किशोर को योग करते देखकर नम्रता को बहुत खुशी हुई. नम्रता ही तो एक तरह से उसकी योग-शिक्षिका थी. किशोर ने उसके चरण-स्पर्श कर सादर प्रणाम किया. स्वाभाविक था कि नम्रता ने उससे योग की शक्ति से तन-मन के लाभ के बारे में पूछा.
”सच पूछें तो डॉक्टर साहब की योग से जुड़ने और स्क्रीन से मुड़ने की सलाह से और आपके समुचित निर्देशन से मुझे बहुत लाभ हुआ है.”
नम्रता तो अपने शिष्य की सफलता से बहुत खुश हुई, लेकिन किशोर 2 साल पहले के अतीत में पहुंच गया था.
योग की शक्ति के बारे में उसने सुना बहुत था, पर न तो कभी योग करने का उसका मन हुआ, न योग की शक्ति को जानने का. इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स की लत के शिकार 16 साल के किशोर का इधर-उधर के कामों में न जाने कैसे समय बीत रहा था. तभी उसने टिकटॉक खेलने से रोकने पर तमिलनाडु में 24 वर्षीय एक मां के आत्महत्या करने और मध्यप्रदेश में पिछले महीने लगातार 6 घंटे पबजी खेलने वाले एक छात्र की दिल का दौरा पड़ने से हुई मौत की खबरों को पढ़ा. वह खुद भी तो इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स की लत का शिकार था, इसलिए घबराहट में मनोचिकित्सक के पास सलाह लेने चला गया.
मनोचिकित्सक ने उसकी बात ध्यान से सुनी और इस लत से पहले की और अब की तुलना करने हेतु कुछ प्रश्न पूछे और सोच-समझकर संक्षेप में जवाब देने को कहा-
”स्क्रीन से जुड़ने के बाद आप पहले की तरह अपनी व्यक्तिगत स्वच्छता पर पूरा ध्यान दे पाते हैं?”
”नहीं.” किशोर का सोचा-समझा जवाब था.
”आप पहले की तरह पूरी नींद ले पाते हैं?”
”नहीं.”
”आप को खुद में अवसाद, चिंता, उग्रता, अनिद्रा, चिड़चिड़ापन महसूस होता है?”
”जी हां.” वह समस्या की गहराई को समझने लगा था.
”आप तो विद्यार्थी हैं, पढ़ने में ध्यान केंद्रित करने में परेशानी तो नहीं होती आपको?”
”होती है.”
”आपकी उम्र तो बहुत कम है, आपकी याददाश्त तो ठीक होगी?”
”जी नहीं, बहुत कुछ भूल जाता हूं.”
”सारा दिन आपका क्या करने का मन करता है?”
”बस स्क्रीन के सामने बैठा रहूं.” यह कहते हुए वह तनिक शर्मिंदा था.
”आपने कभी योग-प्राणायाम के बारे में सुना है?” डॉक्टर का अगला प्रश्न था.
”जी, सुना तो बहुत है, कभी किया नहीं, करने का सोचा भी नहीं.”
”तो अब सोच लो.”
”जी अवश्य, मुझे क्या करना होगा?”
”बस योग से जुड़ना होगा. योग का सही अर्थ है जुड़ना- स्वयं से, प्रकृति से, परमात्मा से. कुछ बातें ध्यान में रखना. योग किसी विशेषज्ञ से सीखकर ही करना, अपनी सामर्थ्य के अनुसार करना और नियत समय पर करना. यह तो आप समझ ही गए होंगे, कि स्क्रीन से नाता कम करना होगा. हर सप्ताह 4 घंटे का डिजिटल डीटॉक्स अपनाना होगा. मैं आपको योग गुरु के पास भेज रहा हूं, उनकी बातें ध्यान से सुनना, फिर जरूरत हो तो 15 दिन बाद मुझसे मिलना.”
”किशोर योग से जुड़ने और मनोचिकित्सक के पास दुबारा न आने की जरूरत पड़ने का इरादा करके योग गुरु के पास चला गया था.”

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

3 thoughts on “योग से जुड़ो, स्क्रीन से मुड़ो

  • लीला तिवानी

    अंतरराष्ट्रीय योग दिवस 21 जून
    21 जून साल का सबसे बड़ा दिन होता है, इसलिए इस दिन को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मनाने के लिए चुना गया है. आज 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के मौके पर देशभर में योग के प्रति उत्साह देखने को मिल रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रम के लिए गुरुवार रात को रांची पहुंचे। शुक्रवार को पांचवें अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के कार्यक्रम में वह सुबह छह बजे धुर्वा स्थित प्रभात तारा मैदान में चालीस से पचास हजार आम लोगों के साथ योग करेंगे। रांची में योग दिवस के कार्यक्रम स्थल पर लोगों का सुबह 3 बजे से प्रवेश प्रारम्भ हो चुका है।

    • रविन्दर सूदन

      आदरणीय दीदी, बहुत ही विचारणीय लेख, कभी ट्रेन में सफर करता हूँ तो देखता
      हूँ छोटे छोटे बच्चे 8-10 महीने से लेकर एक-दो साल तक के दूध नही पीते या
      जब रोने लगते हैं तो माताएं उन्हें फोन पर वीडीओ कार्टून लगाकर दे देती है तो
      बच्चा खुश होकर खाता पीता भी है और वीडीओ भी देखता जाता है. ऐसे बच्चों की आँखों पर भी जोर पड़ता है और शीग्र ही उन्हें चश्में की भी जरूरत पड़ती है. योग से आपने शारीरिक मानसिक स्वस्थ रहने के लाभ बता कर बहुत अच्छी जानकारी दी है. बहुत धन्यवाद, बहुत शुक्रिया.

      • लीला तिवानी

        प्रिय ब्लॉगर रविंदर भाई जी, आपने बिलकुल दुरुस्त फरमाया है. अपनी आरामतलबी के कारण हम बच्चों को मोबाइल की स्क्रीन से जोड़ते हैं, इससे उनकी आंखों की रोशनी पर बहुत दुष्प्रभाव पड़ता है. बड़े होने पर उन्हें आंखों की रोशनी बढ़ाने के लिए शीर्षासन करना पड़ता है. ब्लॉग का संज्ञान लेने, इतने त्वरित, सार्थक व हार्दिक कामेंट के लिए हृदय से शुक्रिया और धन्यवाद.

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