कविता

कलम

कलम कहती है बहुत कुछ
कुछ दिल की बातें
जब लेती है यह सुन
शब्दों से आलिंगन कर
एहसासों के मोतियों को
पिरो लेती है।
कलम देखती है
वो सब कुछ जो दिखाया जाता है
कभी अनदेखी, अनदेखा भी
दिल दहलाने वाली वारदातों को भी
लिख देती है।
कलम लेखक की ताकत
होते हुए भी
कई बार लिख देती है
जो नही होता है मन में
न जज़्बात ही उमड़ते हैं
बस लिख देती है
महज लिखने के लिए।
कलम शिक्षक की
डॉक्टर की, वकील की
या हो किसी की भी
बोलती है
कभी मीठा, कभी ककर्ष
कलम! देखती हूँ इसको जब भी
एक प्रश्न पूछती है ये
क्या तुम पहचान पायी हो मुझको
और मैं
अपनी कलम से परिचित होने का
कर रही हूँ प्रयास
एक उम्मीद से
कर लेगी आलिंगन अपने में
और मैं मिल जाऊँगी इसकी श्याही में।

— कल्पना भट्ट

कल्पना भट्ट

कल्पना भट्ट श्री द्वारकाधीश मन्दिर चौक बाज़ार भोपाल 462001 मो न. 9424473377