सामाजिक

अध्यापक के परम कर्तव्य

एक अध्यापक का परम कर्तव्य है कि वह सबसे पहले एक अच्छा ज्ञानवान गुरु बने और अपने विद्यार्थियों में ज्ञान ऊर्जा को विकसित करें क्योंकि जब तक अध्यापक में ही ज्ञान ऊर्जा नहीं होगी वह अपने छात्रों में ज्ञान को कभी भी विकसित नहीं कर सकता और दूसरा महत्वपूर्ण उसका कर्म है कि वह अपने विद्यार्थियों का एक अच्छा मित्र बने तो जो विद्यार्थी अपने हर कर्म को सांझा करे और अपनी कमियों और गुणों को बहुत आसानी से अपने अध्यापकों को बता सकें। क्योंकि जब तक हम यह नहीं जानेंगे कि हमारे विद्यार्थियों के अंदर क्या गुण है और क्या कमियां है तब तक हम अपने विद्यार्थियों को समझ ही नहीं सकते जब हम किसी भी इंसान को या किसी भी बच्चे को समझ नहीं पाते तब हम उस पर अपना दायित्व नहीं सौंप सकते। तीसरा अध्यापक का परम कर्तव्य है कि वह अपने गुणों को अपने छात्रों में भी विकसित करें अगर उसके पास कुछ अच्छे गुण है या अच्छी आदतें हैं तो उन आदतों को अपने छात्रों में डालने की कोशिश करें क्योंकि तभी हम नव भारत का निर्माण कर सकेंगे। अध्यापक का चौथा महत्वपूर्ण कर्म है कि बच्चों में रचनात्मकता का उदय करें बच्चों को कुछ नया करने के लिए उत्साहित क्योंकि बाल उम्र ऐसी आयु है जिसमें बच्चे नई चीजें करने में सक्षम होते हैं और उन्हें करने के लिए उत्साहित भी होते हैं। अध्यापक का पांचवा महत्वपूर्ण कर्तव्य है कि वह बच्चों में सकारात्मकता का उदय करें वह क्योंकि जब बच्चे  सकारात्मकता सोचते हैं तो वह कभी भी जीवन में निराश नहीं होते और कभी भी वह गलत कदम नहीं उठाते हैं और न ही जीवन के गलत पथ पर जाते हैं। अध्यापक का छठा कर्तव्य है कि वह बच्चों में एकात्मकता उजागर करें उन्हें मिल जुल कर रहना सिखाएं,मिलजुल कर पढ़ने लिखने के लिए उत्साहित करें क्योंकि जब वह मिलजुलकर हर कार्य करेंगे तो उन में जाति पाति का भेदभाव कभी भी नहीं पनप नहीं सकेगा। अंत में मैं बस यही कहना चाहूंगा कि अगर अध्यापक अपने कर्तव्य का पूर्ण तौर पर निर्वाह करें तो वह बच्चों में नई उर्जा में रचनात्मकता  कलात्मकताओं का विकास कर सकते हैं

— राजीव डोगरा

*डॉ. राजीव डोगरा

भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा कांगड़ा हिमाचल प्रदेश Email- Rajivdogra1@gmail.com M- 9876777233