गीत/नवगीत

प्यार का गीत

नहीं कोई सुंदर है तुझ-सा ज़मी पर
फलक पर,इधर पर,उधर पर,कहीं पर।

कहाँ चाँद ने रूप तुझ-सा है पाया
कभी घटता जाए कभी बढ़ता आया
कहाँ मेघों में तेरी आँखों-सा काजल
हवा भी ना झूमे तेरा जैसे आँचल
नदियों की कलकल में संगीत तो है
तेरे सुर-सा मादक कहाँ गीत वो है
कहाँ रात में तेरे जैसी कहानी
कि अंगड़ाई लेती है तेरी जवानी
कलियाँ खिले तो सुबह को बुलाए
मगर तेरी मुसकान दुनिया भुलाए
नहीं तेरा उपमान सारी मही पर
फलक पर,इधर पर,उधर पर,कहीं पर।

फूलों की सुरभि चमन में समायी
तेरे साँसों-सी गंध मैंने ना पायी
धवल चाँदनी से गगन भी नहाता
मगर तुझ-सा उज्ज्वल कभी हो न पाता
बरखा ने टिपटिप की ग़ज़लें सुनायी
पायल की तेरी थी प्यारी रुबाई
हिमकण ने चाँदी की चादर बिछाई
तेरे मुख की बढ़कर थी उससे जुन्हाई
ऊषा ने शरमाके चेहरा छिपाया
कपोलों में तेरे जो लाली को पाया
तुझे खोज हारा, मिली तू नहीं पर
फलक पर,इधर पर,उधर पर,कहीं पर।

सुना है विधाता ने सृष्टि बनाया
चंदा-सितारों से उसको सजाया
दरिया-प्रपातों की तोरण लगायी
सागर की लहरों की झालर बनायी
रंगीन फूलों की चुनरी बना दी
शबनम के मोती की लड़ियाँ सजा दी
परिंदों की सरगम से भैरव सुनाया
जुगनू से भी राग दीपक गवाया
शहद की मधुरता की सौगात देकर
नीलम-नगीने, जवाहरात देकर
भरा मन न उसका ये सौगात देकर
तो उसने तराशा तुझे फिर यहीं पर
फलक पर,इधर पर,उधर पर,कहीं पर।

तुझे अपने दिल की तहों में छिपा लूँ
इन आँखों में ज्योति बनाकर बसा लूँ
तुझे छू न पाये हवाओं के झोंके
न काँटा ना कंकर तेरी राह रोके
चले जिस डगर तू सुमन मुस्कुराएँ
दिशाएँ सकल ले लें सारी बलाएँ
जलें दीप दुनिया के आँगन-किवारे
ये दिनकर ये हिमकर तेरा दर बुहारे
मिले खुशियाँ इतनी न दामन समाये
रखूँ तुझको ऐसे, नज़र लग न जाए
ना ग़म हो जहाँ का रहे तू वहीं पर
फलक पर,इधर पर,उधर पर,कहीं पर।

डरता है मन तू कहीं खो ना जाये
कभी दूर मुझसे कहीं हो ना जाये
बिना संग तेरे ना ये साज होगा
न मुरली में मेरी कोई राग होगा
मेरे मन के मंदिर में मूरत तो होगी
मगर प्यार की उसमें सूरत न होगी
मैं हर युग, जनम में बुलाता रहूँगा
मिलने को तुझसे मैं आता रहूँगा
मेरी रूह भटकेगी हो के दीवानी
कभी खत्म होगी ना अपनी कहानी
तुझे प्यार करता रहूँ हर कहीं पर
इधर पर,उधर पर,फलक पर, ज़मी पर।