गीत/नवगीत

गीत : बरसो बरखा-बरसो बरखा

बरसो बरखा,बरसो बरखा,गाओ गीत सुहाने ।
आ जाओ हर प्राणी की अब,प्यास बुझाने ।।
कबसे हम सब तरस रहे थे
सूखे कंठ लिये
कबसे हम सब कलप रहे थे
रीते घड़े लिये
ताल,कुंये,नदियां भर जायें,ऐसा प्यार निभाने ।
आ जाओ हर प्राणी की अब ,प्यास बुझाने ।।
बरखा तुम में जीवन का सत् ,
 तुमसे ही तो हर इक पलता
तुम बिन सब कुछ सूना-सूना,
मौसम खलता,जीवन खलता
आल्हा की धुन,मल्हारों के मधुरिम राग सुनाने ।
आ जाओ हर प्राणी कीअब,प्यास बुझाने ।।
तुमसे ही सावन के झूले
पर्व- तीज का मान
तुमसे ही राखी का बंधन,
खेत और खलिहान
हर नर -नारी की मुस्कानों,में नव रंग मिलाने ।
आ जाओ हर प्राणी की अब,प्यास बुझाने ।।
ना वर्षा कम,ना हो ज़्यादा,
तभी मिलेगी खुशियां
साहूकार की बंद रहेंगी,
तब ही तो सब बहियां
आ जाओ अब बरखा रानी,मीठी प्रीत निभाने ।
आ जाओ हर प्राणी की अब,प्यास बुझाने ।।
— प्रो.शरद नारायण खरे

*प्रो. शरद नारायण खरे

प्राध्यापक व अध्यक्ष इतिहास विभाग शासकीय जे.एम.सी. महिला महाविद्यालय मंडला (म.प्र.)-481661 (मो. 9435484382 / 7049456500) ई-मेल-khare.sharadnarayan@gmail.com