कविता

फिर सदाबहार काव्यालय- 29

कोई तो वृक्षों की व्यथा सुने!

काश, वृक्ष भी राक्षसों के जमाने जैसे होते!
कट जाने पर एक, खड़े कई होते,
पौधों से वृक्ष बने,
आंधी-तूफ़ाँ से लड़कर,
देते छांव सभी को खुद कड़ी धूप में तप कर,
देते सभी को फूल फल और शुद्ध हवा,
चुपचाप सह लेते हैं सब,
लेते नहीं रुपय्या एक या सवा.
चाहे काटकर ठण्ड भगाओ चाहे बना लो दवा,
दूषित हवा खाकर भी हमें देते है शुद्ध हवा.
इन्हें काट कर भले ही तुम बन रहे शैतान,
उसे तो अगले जनम में, बनना है इंसान.
किसी को काटकर मैं रोजी-रोटी पाऊं,
या उसे उजाड़ कर अपना घर बनाऊं.
मानव के कर्मों को देखकर कहता है भगवान,
”अभी भी नहीं समझा तो फिर, कब समझेगा इंसान!
वृक्ष की महिमा अपरम्पार,
इनके तुम पर बड़े उपकार,
कोई इनका मर्म न जाने,
बस उन्हें तो फल हैं खाने,
बरसों मूक खड़े लाचार,
फिर भी कोई नहीं दरकार,
कोई तो सुने इनकी पुकार,
वरना पड़ेगी प्रकृति की मार,
मानव करे इनका तिरस्कार,
जीव-जंतुओं को इनसे प्यार,
जीकर देते पर्यावरण सुधार,
मरके इनके शरीर से होता व्यापार,
कोई तो हमारी व्यथा सुने!
कहते ये बेचारे मूक जुबां में बारम्बार,
कोई तो वृक्षों की व्यथा सुने!
कोई तो वृक्षों की व्यथा सुने!
कोई तो वृक्षों की व्यथा सुने!”
रविंदर सूदन

मेरा संक्षिप्त परिचय
हिंदी से मुझे बचपन से ही लगाव रहा है. मैंने शासकीय विज्ञान महाविद्यालय जबलपुर से रसायन में एम. एस. सी. करने के पश्चात केंद्रीय सुरक्षा संस्थान जबलपुर में 30 वर्षों तक विभिन्न पदों पर कार्य किया. आजकल रिटायर्ड जीवन में छुटपुट हिंदी लेखन के अतिरिक्त आध्यात्मिक और सामाजिक कार्य कर रहा हूँ.

नवभारत टाइम्स में समाचारों और ब्लॉग में प्रतिक्रिया लिखता था. आदरणीय लीला बहन जी के प्रोत्साहन से ब्लॉग लिखना शुरू किया. नवभारत में प्रतिक्रियाएं लिखता रहता हूँ. 60 आध्यात्मिक, राजनैतिक, व्यंग्य, कविता हास्य लेख लिख चुका हूँ. जय विजय में भी यदा-कदा लिखता हूँ.
परख से परे है ये शख्सियत मेरी,
मैं उन्हीं के लिए हूँ जो समझें कदर मेरी.
परवाह नहीं चाहे ज़माना कितना भी खिलाफ हो,
चलूँगा उसी राह पर जो सीधी और साफ़ हो,
आस्तिक हूँ कभी नास्तिक हूँ,
पर जितना भी हूँ वास्तविक हूँ.

मेरे ब्लॉग की वेबसाइट है-
https://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/uski-kahaani-bhag-1/

फिर सदाबहार काव्यालय के लिए कविताएं भेजने के लिए ई.मेल-
tewani30@yahoo.co.in

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “फिर सदाबहार काव्यालय- 29

  • लीला तिवानी

    आपको यह जानकर अत्यंत हर्ष होगा, कि फिर सदाबहार काव्यालय- 28 पब्लिश होते ही हमारे पास फिर सदाबहार काव्यालय के लिए 3 सदाबहार कविताएं आ गईं. 3 अलग-अलग कवि और 3 अलग-अलग विषय. सबसे पहले प्रस्तुत है भाई रविंदर सूदन की यह कविता ”कोई तो वृक्षों की व्यथा सुने!”, जो उन्होंने फिर सदाबहार काव्यालय- 28 की प्रतिक्रिया-स्वरूप लिखी थी. फिर सदाबहार काव्यालय- 28 की कविता ”वृक्ष की महिमा अनमोल बड़ी” जुलाई 1-7 तक वन महोत्सव सप्ताह के उपलक्ष में वृक्षों के विकास के प्रति जागरुकता का एक प्रयास था, यह कविता भी उसी कड़ी का एक सदाबहार प्रयास है. हमारे उन अनेक पाठक-कामेंटेटर्स को कोट-कोटि नमन, जो अपनी शानदर-जानदार-लाजवाब समसामयिक ब्लॉग्स और प्रतिक्रियाएं लिखकर जनता-जनार्दन की जागरुकता बढ़ा रहे हैं और देश-समाज की सेवा में तत्पर हैं. रू-ब-रू होइए भाई रविंदर सूदन की इस सदाबहार कविता से.

Comments are closed.