हास्य व्यंग्य

व्यंग्य – बारिश की चिट्ठी 

प्यारे देशवासियों, उम्मीद है कि आप खुश होंगे ! प्रेम में महक कर मुश्क होंगे। वैसे यहां सब कुशल है। बस आपकी दुआओं का फल है। ….कि मैं फिर आ रही हूं। मेरे आने की आहट से मन में चुनचुनाहट-सी होती है। मेरे पांव धरती पर पड़े तो सौंधी खुशबू होती है। मैं आती हूं तो मन मलंग हो जाता है। मुझे छू लें तो रस अंग-अंग हो जाता है। गरीब के घर आऊं तो छत टके रात भर जागे हैं। संपन्न के घर आऊं तो जुड़े प्रेम के धागे हैं। बे-मौसम आऊं तो आंखों से आती हूं। मौसम में आऊं तो आंसू धो जाती हूं। मुझ पर लिखे कवियों ने गीत हैं। मेरा एक नाम प्रीत है। पर मेरा एक और रूप है, वो थोड़ा कुरूप है। मैं कमजोर हूं, बेबस हूं और मैं घमंडी भी हूं। मैं बरसात हूं। कभी आती हूं छम-छमकर। कभी आती हूं घन-घनकर। छमछम आऊं तो खुशबू छोड़ जाऊं। घनघन जो आऊं तो सब ले जाऊं। पर मैं जैसी भी हूं तुमने ही तो बनाया है। वो ही दूंगी जो तुमसे पाया है। जो चाहे झूलो पर हो चाय-पकौड़ों का त्योहार। …तो मेरे आने से पहले हो जाओ तैयार। ये धमकी नहीं विनती है। ये चेतावनी भी नहीं नियति है। इसको जानो, मुझे पहचानो। मैं बारिश हूं। तुम्हारी अपनी बारिश। रेडियो पर बारिश की चिट्ठी सुन प्यारेलाल की गर्मी छूमंतर हो गई। बारिश के आगमन की सूचना मात्र से वो झूमने गाने लग गया – काले मेघा, काले मेघा पानी तो बरसाओ…..। गांव में बच्चों की इंदर सेना अठखेलियां करती हुई गाने लगी – काले मेघा पानी दे, गगरी फूटी बैल पियासा, पानी दे, गुड़धानी दे, काले मेघा पानी दे…। देखते ही देखते सारे गांव का मन और माहौल बिन बारिश के ही बारिशमय हो गया। बारिश ने भी गांव वालों को निराश नहीं किया। इंदर सेना की अर्ज सीधी भगवान इन्द्र ने सुन ली और फौरन बरसने का निश्चय किया।
लगभग सायं पांच बजे गांव में बादल घिर आए। बिजली चली गई। हवाओं ने अपनी चहलकदमी तेज की और सूरज दादा के वेग से तपकर लाल हुई धरती के कलेजे पर बारिश की पहली बूंद गिर पड़ी। फिर इन बूंदों का क्रम नहीं रूका तो नहीं रूका। देखते ही देखते बारिश ने पूरी तरह खुलकर नृत्य किया। अब वक्त था प्यारेलाल के बारिश के सपने सच होने का। बारिश के आने से पहले ही यमला पगला दीवाना हुआ प्यारेलाल बारिश की झमाझम बूंदों को देखकर अपने को रोक नहीं पाया। वह अपनी पत्नी और बच्चों के साथ घर के आंगन में नाचने लगा। नाचना गाना पूरा हुआ तो पत्नी को पकौड़े और चाय का आदेश दे डाला। पानी गिरते गया और प्यारेलाल गरमा-गरम पकौड़ों का स्वाद इमली की चटनी के संग अदरक वाली चाय के साथ लेता गया। पकौड़ों का कटोरा और चाय का कप खाली हो गया पर बादल अभी भी बरस रहे थे। पहले टिप टिप, फिर झमाझम और अब धन धना धन बरसने लगे। प्यारेलाल की छत से पानी टपकने लगा। कमरा स्विमिंग पूल बन गया। प्यारेलाल और पूरा परिवार अब बारिश का गायन छोड़ पानी को बाहर निकालने में जुट गया। पानी को बाहर करते-करते प्यारेलाल का पारा सातवें आसमान पर पहुंच गया। अब उसे बारिश पर गुस्सा आने लगा। सुबह उठा तो देखा कि खटिया के चारों पांवों को बारिश के पानी ने दबोच लिया है। काम-धंधे से प्यारेलाल की छुट्टी हो गई। और तो और बारिश के पानी के संपर्क में आए प्यारेलाल को जुकाम ने जकड़ लिया। छत से टपकता पानी रूकने का नाम नहीं ले रहा था और ऊपर से नाक से गंगा और बहने लग गई। गरीबी में आटा गीला वाली स्थिति हो गई।
इतना ही नहीं प्यारेलाल के जुकाम ने पूरे परिवार को चपेट में ले लिया। पूरे परिवार की सांस अटक गई। थका हारा प्यारेलाल अब इन्द्रदेव के समक्ष घुटने टेक बारिश के नॉनस्टॉप बहने पर स्टॉप लगाने की अरदास करने लगा। पर इन्द्रदेव भी मुड़ के मालिक है। कहां हर बात मानने वाले थे। पूरे पांच दिन तक बारिश ने बरसकर अपनी रफ्तार कम की। लेकिन तब तक पूरा गांव कीचड़ खाने में तब्दील हो गया था। कीचड़ से फिसलकर कितने ही लोगों की कमर टूट गई। गड्ढों ने बताया कि भारत एक गड्ढा प्रधान देश अब भी है। कई छतें रात-रात भर बरसकर भगवान को प्यारी हो गई। कई लोग बीमार हुए। और कई सामान की क्षति के बाद बारिश रुकी। बारिश से जले प्यारेलाल ने कई दिनों तक बारिश का नाम नहीं लिया। लेकिन ज्यूं ही गर्मी ने सताना शुरू किया तो प्यारेलाल के सुप्त पड़े अरमान पुन: जाग्रत हो गए। वह पुन: बारिश का आंखों में इंतजार लेकर बेसब्र होकर आसमां को ताकने लगा।
सच तो यह है कि आम आदमी का मुसीबतें कभी पीछा नहीं छोड़ती। उसे कई से कष्ट पहुंचे तो वह कई और से आनंद उठाने की सोच लेता है। और फिर वहां से भी आनंद की जगह कष्ट मिले तो कोई और ठिकाना ढूंढ लेता है। बरसात पर बंदिश इंसानी हाथों की करामात नहीं है। वह प्रकृति है। उसे केवल प्यार से ही जीता जा सकता है। उसका सम्मान करना सीख लें तो वह हमें कष्टों की जगह आनंद दे सकती है। और हां बारिश की भविष्यवाणी हर बार की तरह इस बार भी मौसम विभाग ने कर दी है। पहले से तैयार हो जाइये ! कई आपका हाल भी प्यारेलाल की तरह बेहाल न हो। समय है चेत जाइये !

देवेन्द्रराज सुथार

देवेन्द्रराज सुथार , अध्ययन -कला संकाय में द्वितीय वर्ष, रचनाएं - विभिन्न हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित। पता - गांधी चौक, आतमणावास, बागरा, जिला-जालोर, राजस्थान। पिन कोड - 343025 मोबाईल नंबर - 8101777196 ईमेल - devendrakavi1@gmail.com