लघुकथा

सात रंग का सावन

अनुज स्नेह। सात रंग मन में समाए हुए गत वर्ष जब पीहर में तुम्हारी कलाई पर राखी सजाई थी तो शगुन की साड़ी के साथ तुम्हारा पवित्र ममत्व स्नेह प्यार भी मिला था। कुछ महीनों पूर्व तुम्हारे जीजाजी के असामयिक निधन के कारण यह सावन रंग हीन है। वाट्सएप पर तुमने अपनी पत्नी को जो सन्देश भेजा वह गलती से मुझे भी सेन्ड हो गया था। भाई मेरे, बहन साड़ी के लिए भाई को राखी नहीं भेजती। भाई बहन का रिश्ता प्यार का होता है। साड़ी लिफाफो का व्यापार नहीं। फिर मैं शिक्षिका होने के कारण तुम्हारे घर में जीवन भर के लिए बोझ नहीं बनने वाली। तुम तनाव रहित रहना। बहू की अनुमति लेकर कभी बहन को बस याद कर लिया करना। ईश्वर ने मेरे सावन से जो रंग मिटा दिए हैं, वे तो अब लोटने से रहे। भीगी पलकों से अब लिखा नहीं जा रहा है। सस्नेह वही बहन मनीषा।

दिलीप भाटिया

*दिलीप भाटिया

जन्म 26 दिसम्बर 1947 इंजीनियरिंग में डिप्लोमा और डिग्री, 38 वर्ष परमाणु ऊर्जा विभाग में सेवा, अवकाश प्राप्त वैज्ञानिक अधिकारी

One thought on “सात रंग का सावन

  • अशोक वाधवाणी

    सराहनीय, अभिनंदनीय रचना । बधाई हो सरजी !

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