कविता

दाम्पत्य सूत्र

दिलों का है मिलना ही सबसे ज़रूरी,
बाक़ी ना रहती है फिर कोई दूरी.
प्रणय-पथ पे पग तुम बढ़ाओ निरन्तर,
मिटाते चलो नित जो आएं कुछ अन्तर..

सम्भोग में भाव ही है प्रबलतम,
जबरन मनुज नहीं बनते हैं प्रियतम.
संतति के हित में समन्वय आवश्यक,
सम्बंध का बस है सम्वाद रक्षक..

अलग अपने रिश्ते तुम सारे भुलाकर,
बुनो घर का हर ताना-बाना मिलाकर.
रखो याद अपनों के अरमान सारे,
जुटो पूर्ण करने जो तोड़ने हों तारे..

ग्रहस्थी की भगदड़ में फँसना ना इतना,
सुध अपनी रहे फ़िक्र दूजे की कुछ ना.
समय मीत-हित तुम निकालो नित अच्छा,
दख़ल हो ना फिर उसमें किसी और ही का..

बढ़ती ही जाए ये कोशिश तुम्हारी,
कि बातें लगें और भी सबको प्यारी.
कंधे से कंधा मिलाकर ही चलना,
यही सीख तुम बच्चे-बच्चों को देना..
कर्नल अनूप सक्सेना