गीतिका/ग़ज़ल

मैं जोकर हूँ!

हाँ! मैं जोकर हूँ!
औरों से हटकर हूँ
रोते हैं सब जहाँ पर
हँसता मैं डटकर हूँ
बर्बाद हैं सब इश्क़ में
आबाद मैं क्योंकर हूँ
बिकते वे चंद सिक्को में
ईमान का मैं पैकर हूँ
मर मर कर तुम जीते हो
मैं जीता भी मर कर हूँ
मुश्तरी तुम ज़ेवर के सही
मैं सपनों का सौदागर हूँ
रेतीली सी दुनिया सारी ये
मैं एक हरियाला मंज़र हूँ
कोई बगलगीर तो हूँ, पर
ना बगलों छिपाया ख़ंजर हूँ
हयात पल दो पल की सही
क़यामत तक हमसफर हूँ
अरमानों के फूल मुरझाए यूँ
लब-ए-गोया, के अब बंजर हूँ
हाँ! मैं जोकर हूँ!
— प्रियंका अग्निहोत्री “गीत”
पैकर : प्रतिनिधि
मुश्तरी : खरीददार
बगलगीर : गले लगा हुआ
लब-ए-गोया : बोलते हुए लब

प्रियंका अग्निहोत्री 'गीत'

पुत्री श्रीमती पुष्पा अवस्थी