कविता

वर्षा रुपी कुदरत तांडव को….


वर्षा रुपी कुदरत तांडव को शब्द चित्र में कहते हैं।
ब्लाक करौंदी की सुनलो हम सत्य कहानी कहते हैं।।

बड़े नाम की तेज में, ग्रामीणों की देख में,
बनी सड़क अच्छी खासी, दिखने में मोटी ताजी।
बारिस की नन्हीं बूदों की चोट नहीं सह पायी,
आज बिखर गयी टूट कर हार कर बूदों से बाजी।।

तकदीर संग बाजी हार रहा है बनवारी लाल,
सर्प दंस से चंद दिन पहले पत्नी गयी स्वर्ग सिधार।
हाय इसपर भी मेरे विधाता कहर डालना ना भूला,
सब धन बारिस में खोया अब चढ़ने लगा उधार।।

जिस सड़क पर धीरे चलना भूल गए थे सब राही,
अनियंत्रित रफ्तार में होकर ठोंक रहे थे हमराही।
उसी सड़क पर गिर के मरा है शीशम पेड़ विशाल,
बिना नियंत्रण चलने वाले ठहर गए हैं सब राही।।

वैसे भी ब्लाक तलक तो कम ही जाया करते हैं
जाने वाले जाकर बस सन्नाटा पाया करते हैं।
पेड़ गिरा उसी डगर पर आवागमन हुवा बाधित,
रुके हुये हैं बीच सड़क पर जो जो जाया करते हैं।।

सुंदर-सुंदर सड़क पायी थी पापड़ बेल हजार,
मंत्री अधिकारी से मिलकर पाया था अधिकार।
भ्रष्ट व्यस्था की लालच नें डुबकी खूब लगायी,
दो दिन की बारिस में बहकर हो गयी है बेकार।।

गावों के खेतों में अब जल संसार दिखाई पड़ता है,
जहाँ कहीं भी बना है घर जलमग्न दिखाई पड़ता है।
पहले यह जल तलाबों में सरंक्षण पाया करते थे,
आज यही जल चौखट के अंदर दिखाई पड़ता है।।

हर गली मोहल्ले में देखो तो दीवारे हैं गिरी पड़ी
दीवारे गर बच गयी तो छप्पर पे छप्पर गिरी पड़ी।
चूल्हे में जलने वाले सब लकड़ी कंडे सरकंडे तैर रहे
खेतों में मक्का की फसलें तेज हवा से गिरी पड़ी।।

।।प्रदीप कुमार तिवारी।।
करौंदीकला, सुलतानपुर
7978869045

प्रदीप कुमार तिवारी

नाम - प्रदीप कुमार तिवारी। पिता का नाम - श्री दिनेश कुमार तिवारी। माता का नाम - श्रीमती आशा देवी। जन्म स्थान - दलापुर, इलाहाबाद, उत्तर-प्रदेश। शिक्षा - संस्कृत से एम ए। विवाह- 10 जून 2015 में "दीपशिखा से मूल निवासी - करौंदी कला, शुकुलपुर, कादीपुर, सुलतानपुर, उत्तर-प्रदेश। इलाहाबाद मे जन्म हुआ, प्रारम्भिक जीवन नानी के साथ बीता, दसवीं से अपने घर करौंदी कला आ गया, पण्डित श्रीपति मिश्रा महाविद्यालय से स्नातक और संत तुलसीदास महाविद्यालय बरवारीपुर से स्नत्कोतर की शिक्षा प्राप्त की, बचपन से ही साहित्य के प्रति विशेष लगव रहा है। समाज के सभी पहलू पर लिखने की बराबर कोशिस की है। पर देश प्रेम मेरा प्रिय विषय है मैं बेधड़क अपने विचार व्यक्त करता हूं- *शब्द संचयन मेरा पीड़ादायक होगा, पर सुनो सत्य का ही परिचायक होगा।।* और भ्रष्टाचार पर भी अपने विचार साझा करता हूं- *मैं शब्दों से अंगार उड़ाने निकला हूं, जन जन में एहसास जगाने निकला हूं। लूटने वालों को हम उठा-उठा कर पटकें, कर सकते सब ऐसा विश्वास जगाने निकला हूं।।* दो साझा पुस्तके जिसमे से एक "काव्य अंकुर" दूसरी "शुभमस्तु-5" प्रकाशित हुई हैं