कविता

तन्हाई

तन्हा रात के  सीने पे
तन्हा चाँद टहलता है
जैसे आसमां आगोश में
जमीं की आकर पिघलता है
विरहा मन कहां किसी भी
बात से कभी बहलता है
दिल ही तो है आँसू पीकर भी
और प्यास से मचलता है
दामन तन्हाई का थामकर
दिल कभी टूटता है बिखरता है
कभी मुस्कुराता है सम्भलता है
सो जाते है जब उजियारे
तब जाके मेरा चाँद निकलता है
— आरती त्रिपाठी 

आरती त्रिपाठी

जिला सीधी मध्यप्रदेश