कविता

सपनों के जख्म

कहाँ तुम सा कोई होता है
कहाँ हम सा कोई मिलता है
उजड़ जाते है कई रस्मों
रिवाजों के सुनहरे से बाग
तब जाके मोहब्बत का एक
खूबसूरत सा गुल खिलता है
नींदे उतर जाती हैं आँखों से
जब कोई सपनों के जख्म
अपनी सिसकियों से सिलता है
ख्वाहिशें तोड़ जाती है ताने-बाने
जब कदम ख्वाब का छिलता है
आसान है इस दुनिया में मरना
सारी जद्दोजहद बस जीने की है
जिंदगी सासों से टकराकर थक
हार के चुपचाप बैठ जाती है
जब किनारा डुबाने के लिए मिलता है।
आरती त्रिपाठी 

आरती त्रिपाठी

जिला सीधी मध्यप्रदेश