कविता

समंदर

जैसे हैं बादल गगन पर

वैसे हैं सागर की लहरें

दोनों का तन-मन सुहावन

करती हैं सूरज की किरणें

जैसे सुबहें होंगी दुपहर

वैसे संध्या होंगी रातें

जब भी रोते हैं वे बादल

चुपके सहता है समंदर

वत्सला सौम्या समरकोन

सहायक व्याख्याता, हिन्दी विभाग, कॅलणिय विश्वविद्यालय, श्री लंका। उद्घोषक, श्री लंका ब्रोडकास्टिंग कोपरेशन (रेडियो सिलोन)