मुक्तक/दोहा

बरसाती दोहे

बादल लेकर आ गये,वर्षा का संदेश ।
जल बरसा दिखलायंगे,वे अपना आवेश ।।
सूखे पर पाई विजय,तुम सचमुच बलवान ।
वर्षा रानी तुम बहुत,रखतीं हो निज आन ।।
बरसो जी भर मेघ तुम,पर इतना हो ध्यान ।
अति वर्षा होती बुरी,इसका हो संज्ञान ।।
भरे कुंये,तालाब सब,नदियों में आवेग ।
वर्षा तुमने दे दिया, हर्ष-खुशी का नेग ।।

कहीं बहुत,कहीं अल्प है,कहीं-कहीं विकराल ।
वर्षा तू बनना नहीं,किसी मनुज का काल ।।

बम्बइया का था भला,बतलाओ क्या दोष ।
जो दिखलाया वेग से,वर्षा तुमने रोष ।।

कहीं गिर रही झोंपड़ी,कहीं गिरे दीवाल ।
कहीं मर रहा है पिता,और कहीं पर लाल ।।

वर्षा रानी कर दया,करुणा का रख भाव ।
बन उदार,संवेदना,का धारण कर ताव ।।

दे आवश्यक नीर तू,पा सबसे सम्मान ।
पर रख पूरा संतुलन,तभी रहेगी आन ।।

वर्षा तेरा आगमन,देता है नित हर्ष ।
पर व्यापकता नीर की,ला देती संघर्ष ।।

वर्षा तू तो देव है,कोमल और उदार ।
इसीलिये जग कर रहा,तेरी जय-जयकार ।।

वर्षा रखना नेह तुम,रखना नित यूं प्रीत ।
तुम दोगे यदि साथ तो,साथ हमारे जीत ।।

— प्रो. शरद नारायण खरे

*प्रो. शरद नारायण खरे

प्राध्यापक व अध्यक्ष इतिहास विभाग शासकीय जे.एम.सी. महिला महाविद्यालय मंडला (म.प्र.)-481661 (मो. 9435484382 / 7049456500) ई-मेल-khare.sharadnarayan@gmail.com