लघुकथा

इंसाफ

 

” साहब ! इंसाफ करो साहब हमारे साथ ! मेरी बेटी का …..! ”
” क्या हुआ तेरी बेटी के साथ ? ”
” कॉलेज से घर लौटते हुए तीन लड़कों ने मेरी बेटी के साथ जबरदस्ती किया ! ”
” कौन थे वो लड़के ? ”
” विधायक श्यामाचरण का बेटा विद्याचरण और उसके दो साथी गोपाल और कबीर ! ”
” कितना पैसा दिया है तुझे विरोधी दल वालों ने विधायक श्यामाचरण को फँसाने के लिए ….? ” कहते हुए दरोगा ने उसे झिड़क दिया था । वह कुछ और कहना ही चाहता था कि दरोगा दाँत पिसते हुए बोला ,” देख बुड्ढे ! अब थोड़ी देर में तू यहाँ से नहीं चला गया तो तुझे और तेरी बेटी दोनों को जेल में ठूँस दूँगा लंबे समय के लिए । विधायक का नाम लेना भूल जाएगा । ”
लड़खड़ाते कदमों से वह वृद्ध मुड़ा ।
दरवाजे के समीप थाने की बाहरी दीवार पर उस वृद्ध के मुँह से पिचकारी की मानिंद ढेर सारा थूक निकलकर थाने की दीवार पर उस जगह चिपक गया जहाँ लिखा था ‘ बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ !’

राजकुमार कांदु

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।