लघुकथा

यादगार बना वो रक्षाबंधन

आज रक्षाबंधन है, आज का दिन भला मैं कैसे भूल सकता हूँ| आज का दिन मेरी जिन्दगी का सबसे खूबसूरत एहसास भरा दिन है बात आज से बारह साल पहले की है ,तब मैं  सिर्फ आठ साल का था, और मेरी बड़ी बहन नेहा मुझसे तीन साल बड़ी थी,,,,हम दोनो भाई बहन की खूब लडाई होती थी, खासकर रक्षाबंधन के दिन राखी बाँधने को लेकर हम दोनों लड़ते थे, और अक्सर मैं जीत जाता था, नेहा दीदी कहती मनू तू छोटा है । मैं बड़ी हूँ। तू मुझे राखी बाँध मैं तेरी रक्षा करती हूँ । हमेशा और मैं कहता कि मैं लड़का हूँ। तुम मुझे राखी बाँधों,और इस लड़ाई की जीत का सेहरा मेरे सर ही रहता था। दीदी हँसते हुए कहती हाँ चल तू बहुत बड़ा मर्द हो गया है। तू ही रक्षा करेगा मेरी। अब और उस रक्षाबंधन को भी हम दोनों लड ही रहे थे, माँ पकवान बनाने में व्यस्त थी, पिताजी बाजार गये थे,सामान लाने मैं खेलते-खेलते घर के बाहर लगी अर्थिंग की तार को दोनों हाथों से पकड़ लिया और करेंट की चपेट में आ गया, मैं जोर- जोर से चिल्लाने लगा सब लोग इकट्ठे होकर तमाशा जैसे देख रहे थे। आवाज सुनकर माँ और दीदी भागते हुए आई और माँ मुझे तार से चिपका देख बेहोश होकर गिर पड़ी नेहा दीदी पास में पडा हुआ बाँस का डंडा उठाकर मेरे हाथ में जोर – जोर से मारना शुरू कर दिया। डंडे के झटके से हाथ तार से छूट गया मेरा मैं गिर पड़ा नेहा दीदी रोते जा रही थी मुझे पकड़ कर लगभग घसीटते हुए अस्पताल की तरफ भाग रही थी पिताजी भी आ गए थे ,तब तक मैं बेहोश हो चुका था। अचानक से हाथों में दर्द के अहसास से मैंने आँखें खोली तो मैं अस्पताल के बेड पर था माँ पिताजी पास ही खड़े बात कर रहे थे, नेहा दीदी कहीं दिखाई नहीं दे रही थी पर मेरे हाथ में राखी बंधी थी शायद जब मैं बेहोश था तब दीदी ने राखी बाँधी होगी मैंनें माँ से पूछा दीदी कहाँ है माँ ने बताया कि दीदी मंदिर में मेरे लिए प्रार्थना कर रही मैं जिद करने लगा मुझे घर ले चलो। माँ पिताजी मुझे लेकर घर आ गये। दीदी भी आ गई, अपने आँसू छुपाते हुए बोली- कैसा है मेरा भाई ?? मैं कुछ नहीं बोला चुपचाप लेटकर सोचता रहा । पता नहीं कब मुझे नींद लग गई जब जागा तो शाम हो चुकी थी । नेहा दीदी भी थककर सो रही थी । मैं उठा और आरती की थाली सजाकर सीधे दीदी के पास जा पहुंचा और अपने हाथ की राखी खोलकर दीदी के हाँथ में बाँध दिया, और रो पड़ा बोला दीदी तुम मेरी रक्षक हो इस राखी पर तुम्हारा हक है। बहन प्रत्यक्ष रूप में भाई की रक्षा तो करती ही है, और अप्रत्यक्ष रूप से हमेशा कभी दुआओं के रूप में कभी आशीर्वाद के रुप में भाई की रक्षा करती है। उस दिन से हम भाई बहन हर रक्षाबंधन एक दूसरे को राखी बांधते है । और रक्षाबंधन का त्योहार मनाते है। मेरी दीदी ससुराल से आ चुकी है। राखी बाँधने अब मैं भी जा रहा राखी बाँधने भी बँधवाने भी।
— आरती त्रिपाठी

आरती त्रिपाठी

जिला सीधी मध्यप्रदेश